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वधमान जीवन कोश
वह वही है, जिसके पहले हिंसा का त्याग नहीं था। फिर हिंसा से निवृत्त था और अब सब प्राणियों की हिंसा से निवृत्त नहीं है। क्योंकि पहले वह असंयति था, फिर संयति हुआ और अब असंयति है। असंयति की जीव-हिंसा को प्रवृत्ति बन्द नहीं होती है। यह समझिए और निर्ग्रन्थों ! यही समझना योग्य है। (ग) भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छियव्वा-आउसंतो ! णियंठा ! इह खलु परिव्वायया वा
परिवाइयाओ वा अण्णयरेहिंतो तित्थ यतणे हितो आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमज्जा ? हंता उवसंकमेन्जा। किं तेसिं तहप्पगाराणं धम्मे आइक्वियव्वे १ हंता आइक्खियब्वे । किं ते तहप्पगारं धम्म सोच्चा णिसम्म एवं वएज्जा-इणमेव णिग्गंथं पावयणं सत्त्वं अणुत्तरं कंवलियंपडिपुण्णं णेयाउयं मंसुद्धं सल्लणंत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं णिज्जाणमग्गं णिव्वाणमग्गं अवितहं असंदिद्धं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं । एत्थठियाजीवा सिझंति बुज्झंति, मुत्चंति परिणिध्वंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। इमाणाए तहा गच्छामो तहा चिट्ठामो तहा णिसीयामो तहा तुयट्ठामो तहा भुंजामो तहा भासामो तहा अब्भुट्टेमो तहा उट्ठाए उदेंत्ता पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमामो मि वएज्जा । हंता वएज्जा। किं ते तहप्पगारा कप्पंति पवावेत्तए १हंता कप्पंति । किं ते तहप्पगारा कप्पंति मुंडावेत्तए ? हंता कप्पं ति । किं ते तहप्पगारा कप्पंति सिक्वावेत्त ए ? हंता कप्पंति । किं ते तहप्पगारा कप्पं ति उक्ट्ठावेत्तए ? हंता कप्पंति । किं ते तहप्पगारा कप्पंति संभजित्तए ? हंता कप्पंति। ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा जाववासाई चउपंचमाई छहसमाई वा अप्पयरो वा भुज्जयरोवा देसं दृइज्जित्ता अगारं वाज्जा ? हता वएज्जा। ते णं तहप्पगारा कप्पंति सभ जित्तए ? णो इणठे समठू । से जे से जीव जे परेणं णो कप्पंति संभुजित्तए ? से जे से जीवे जे आरेणं कप्पंति संभजित्तए। से जे से जीवे जे इयाणिं णो कप्पंति संभुजित्तए। परेणं अस्समणे, आरेणं समणे, इयाणिं अम्समणे। अस्समणेणं सद्धिं णो कप्पंति समणाणं णिग्गंथाणं संभुजित्तए । सेवमायाणह णियंठा। सेवमायाणियव्वं ।
-सूय० श्रु २/अ ७/सू १६ भगवान् गौतम-आयुष्मान निम्रन्थ ! जो निर्ग्रन्थ धर्म पृच्छा के योग्य होते हैं, उनके पास परिव्राजक, परिवाजिका या कोई भी अन्यतीर्थी होकर (भी) धर्म सुनने के लिए आ सकते हैं ?
हाँ आ सकते हैं।
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