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वर्धमान जीवन-कोश
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'.१० प्रभास गणधर का केवलिकाल-जिनपर्याय
(सचायं जिनपर्यायः) प्रभासस्य षोडश प्रभास गणधर की जिनपर्याय १६ वर्ष की थी।
-आव० निगा ६५३-५४/मलय टीका
.११ प्रभास गणधर की आयु-सर्वायु
इन्द्रभूतेः सर्वायुर्द्विनवतिवर्षाणि x x x प्रभासस्य चत्वारिंशत् । -आव० निगा६५५-५६/टीका प्रभास की कुल आयु ४० वर्ष की थी।
नोट-भगवान महावीर के परिनिर्वाण के ६ वर्ष पूर्व प्रभास गणधर का परिनिर्वाण हो चुका था। ग्यारह गणधरों में सर्वप्रथम प्रभास गणधर का परिनिर्वाण हुआ। चूंकि प्रभास गणधर गृहस्थावास में १६ वर्ष, छमस्थावस्था में ८ वर्ष तथा केवलिपर्याय में १६ वर्ष रहे। अतः कुल आयु ४० वर्ष की थी।
.४६(ग) विविध .१ द्वादशांग का उपदेश -
x x x भग्गबावीसपरीसहपसरस्स सच्चालं कारस्स अत्थो कहिओ। तदो तेण गोअमगोत्तेण इंदभुदिणा अंतोमुहुत्तेणावहारि यदुवालसंगत्थेण तेणेव कालेण कयदुवालसंगगंथरयणेण गुणे ह सगसमाणस्स सुहमा (म्मा) इरियस्स गंथो वक्खाणिदो। तदो केत्तिएण विकालेण केवलणाणमुप्पाइय बारसवासाणि केवल विहारेण विहरिय इंदभूदिभडारओ णिव्वुई संपत्तो।
-कसापा० भाग १/गा /सू-१/ ८४ जिन्होंने क्षुधा आदि बाइस परीसहों के प्रसार को जीत लिया है और जिनका सत्य ही अलंकार है - ऐसे आर्य इन्द्रभूति आदि के लिए उन महावीर भट्टारक ने अर्थ का उपदेश दिया। उसके अनन्तर उन गौतम गोत्र में उत्पन्न हुए इन्द्रभूति ने एक अन्तर्मुहुर्त में द्वादशांग के अर्थका अवधारण करके उसी समय बारह अंग रूप ग्रन्थों की रचना को और गुणों से अपने समान ही सुधर्माचार्य को उसका व्याख्यान किया।
तदनतर कुछ काल के पश्चात् इन्द्रभूति भट्टारक केवलज्ञान को उत्पन्न करके और बारह वर्ष तक केवलि-विहार रूप से विहार करके मोक्ष को प्राप्त हए। .२ भगवान् महावीर और गौतम का भवान्तरीय सम्बन्ध
गयगिहे जावपरिसा पडिगया। गोयमाई ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी-'चिरं स सिटोसि मे गोयमा ! चिरसंथुओसि मे गोयमा ! 'चिर परिचिओसि मे गोयमा ! चिरजुसिओसि मे गोयमा ! चिराणुगओसि मे गोयमा ! चिराणुवत्तीसि मे गोयमा ! अणंतरं देवलोए अणंतरं माणुस्सएभवे, किं परं ? मरणा कायस्सभेदा, इओचुता दो वि तुल्ला एगट्ठा अविसेसमणाणत्ता भविस्सामो।
-भग श५४/७
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