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वर्धमान जीवन-कोश .११ भगवान महावीर के पट्टधर-सुधर्म गणधर (क) समणस्सणं भगवओ महावीरस्स कासवगोत्तस्स अजमुहम्मे थेरे अंतेवासी अग्गिवेसायणगोते ।
-कप्प० सू० २०५ काश्यप गोत्रीय श्रमण भगवान महावीर के अंतेवासी आर्य सुधर्मा स्थविर अग्निवश्यायन गोत्रीय थे।
श्वेताम्बर मवानुसार गौतम के निर्वाण के पश्चात् आठ वर्ष तक वे केवल ज्ञानी रूप में रहे। दिगम्बर परंपरा में उनका केवल ज्ञान-काल दस वर्ष का माना जाता है। (ख) जादो सिद्धो वीरो तद्दिवसे गोदमो परमणाणी। जादे तस्सिं सिद्धे सुधम्मसामी तदो जादो ॥१४७६।। तम्मि कदकम्मणासे जबूसामि त्ति केवली जादो। तत्थवि सिद्धिपवण्णे केवलिणो णस्थि अणुवद्धा ।।१४७७।। बासट्ठी वासाणिं गोदम पहुदीण णाणवंताणं। धम्मपयट्टणकाले परिमाणं पिंडरूपेणं ॥ १४७८ ।।
-तिलोप० अधि । जिस दिन भगवान् सिद्ध अवस्था को प्राप्त हए, गौतम को परम ज्ञान या सर्वज्ञत्व प्राप्त हुआ। गौतम के निर्वाण-प्राप्त कर लेने पर सुधर्मा सर्वज्ञ हुए। सुधर्मा द्वारा समस्त कर्मों का उच्छेद कर दिये जाने पर या वैसा कर मुक्त हो जाने पर जंबू स्वामी को सर्वज्ञत्व लाभ हुआ।
जंबू स्वामी के सिद्ध प्राप्त हो जाने के पश्चात् सर्वज्ञों को अनुक्रमिक परंपरा विलुप्त हो गयी। गौतम प्रभृति ज्ञानियों के धर्म-प्रवर्तन का समय पिड रूप में सम्मिलित रूप में बासठ वर्ष का है। (ग) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स कामवगोत्तस्स अन्जसुहम्मे थेरे अंतेवासी अग्गिवेसायणसगोत्त।
थेग्स्स णं अन्जसुहमल्स अग्गिवेसायणसगोत्तस्स अज्जजंबुनाम थेरे अतेवासीकासवगोत्ते : थेस्स्स णं अजजंबुनामस्सकासवगोत्तरस अज्जप्पभवे थेरेअतवासी कच्चायणसगोत्ते ।
थेरस्स णं अज्जप्पभवस्स कच्चायणसगोत्तस्स अन्नसंजभवे थेरे अंतवासी मणगपिया वच्छसगोत्ते।
थेरस्स णं अज्जसेज्जभवस्स मणगपिउणो वच्छसगोत्तम्स अजसभद्दे थरे अंतेवासी तुंगियायणसगोत्ते x x x ।
-कप्प० सू २०५/ पृ० ६१ १-श्रमण भगवान् महावीर, काश्यप गोत्री थे। काश्यप गोत्री श्रमण भगवान महावीर के अग्निवैशायन गोत्री स्थावर
आर्य सुधर्मा नामक अंतेवासी-शिष्य थे। २-अग्निवैशायन गोत्री आर्य सुधर्मा के काश्यपगोत्री स्थविर आर्य जंबू नामक अंतेवासी थे। । :-काश्यप गोत्री स्थविर आर्य जंबू के कात्यायन गोत्री स्थविर आर्य प्रभव नामक अंतेवासी थे .... ४-कात्यायन गोत्री स्थविर आर्य प्रभव को वात्स्यगोत्री स्थविर आर्य सिज्जभव नामक अंतेवासी थे. आर्य सिजंभव
(स्वयंभव ) मनक के पिता थे।
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