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वर्धमान जीवन-कोश . भातृभ्यां स जग्राह तत्क्षणं च द्विजोत्तमः । शतपंचप्रमैश्छात्रः प्रबुद्धस्तत्त्वमजसा ॥१४॥ अन्ये च बहवो भव्या जिनवा किरणोत्करैः। मोहसङ्गतमो हत्वा जगृहुर्मुनिसंयमम् ॥१५०।।
-वीरवर्धमानच० अधि १८ ( भगवान को दिव्यवाणी सुनकर ) ब्राह्मणों का नेता गौतम वैराग्यपूर्वक मोहादि शत्रुओं के साथ मिथ्यात्वरूपी वैरी की सन्तान को मारने और मुक्ति पाने के लिए दीक्षा लेने को उद्यत हुआ।
तत्पश्चात् निश्चय तत्त्व के प्रबोध को प्राप्त उस गौतम ने अपने दोनों भाइयों ( अग्निभूति, वायुभूति ) के साथ पाँच सौ छात्रों के साथ चौदह अंतरंग और दशबाहय परिग्रहको छोड़कर त्रियोग शुद्धिपूर्वक परम भक्ति से जगत्पूज्य जिनमुद्रा को तत्काल ग्रहण किया । .४ गौतम गणधर को सात ऋद्धियाँ व चतुर्दश पूर्वो का ज्ञान : (क) तत्क्षणं श्रीगणेशस्य सप्तवास्य महर्धयः। प्रादुर्बभूवुरत्यन्तपरिणामसुशुद्धितः ॥१६॥
सद्य श्रीवर्धमानार्हत्तत्वोपदेशेन च । सर्वाङ्गार्थपदान्येव हृदा परिणतिं ययुः ।।१६३॥ अर्थरूपेण पूर्वाह्ने श्रावणे बहुले तिथौ। पक्षादौ योगशुद्ध यास्य हीन्द्रभूतिगणेशिनः ॥१६४॥ ततः पूर्वाणि सर्वाणि भागेऽस्य पश्चिमे धिया। दिवसस्यार्थरूपेण प्रादुरासन् विधेः क्षयात् ॥१६॥ ततोऽसौ ज्ञातसर्वाङ्गपूर्वो धीचतुष्कवान् । तीक्ष्णप्रज्ञोमवुद्ध याखिलांगनां रचनांपराम !!१६६।। चकार विश्वभव्यानामुपकारप्रसिद्धये । पूर्वरात्रे मुभक्त्या पदवस्तुप्राभृतादिभिः ॥१६७।। पूर्वाणां पश्चिमे भागे यामिन्या रचनां शुभाम्। पदग्रन्थादिरूपेण चक्रेऽसौ तीर्थवृत्तये ॥१६८ इति वृपपरिपाकाद् गौतमः श्रीगणेशः। सकलयति गणानां मुख्य आसीतसुरायः ॥१६६ पूर्वार्ध ।।
वीरवर्धमानच० अधि १८ जिन-दीक्षा ग्रहण करने पर श्री गौतम गणधर को परिणामों की अत्यन्त विशुद्धि से तत्काल सातों ही महाऋद्धियाँ प्रकट हो गयी।
श्री वर्धमान जिनके तत्त्वोपदेश से सर्व अंगश्रुतके बीज पद इन्द्रभूति गौतम गणधर के हृदय में श्रावण कृष्णपक्ष के आदि दिन अर्थात् प्रतिपदा के पूर्वाह ण कालमें योगशुद्धि के द्वारा अर्थरूप से परिणत हो गये ।
- तत्पश्चात् उसी दिन के पश्चिम भाग में श्रुतज्ञानावरण कर्म के विशिष्ट क्षयोपशम से प्रकट हुई बुद्धि के द्वारा सभी (चौदह) पूर्व अर्थरूप से परिणत हो गये।
भावार्थ-श्रावण कृष्णा प्रतिपदा के पूर्वाह ण काल में तो गौतम अंगश्रुत के वेत्ता हए और अपराह्न काल में चतुर्दश पूर्वो के वेत्ता बने।
इसके पश्चात् सर्व अंग-पूर्व के ज्ञाता और चार ज्ञान के धारी गौतम गणधर ने अपनी तीक्ष्ण प्रज्ञा और विशाल बुद्धि के द्वारा समस्त अंगों की उत्कृष्ट रचना समस्त भव्यजनों के उपकार की सिद्धि के लिए पूर्व रात्रि में सुभक्ति से की । और रात्रि के पश्चिम भाग में पद, वस्तु, प्राभृत आदि के द्वारा सर्व पूर्वो की शुभरचना पद-ग्रं से धर्मतीर्थ को प्रवृत्ति के लिए की।
इस प्रकार धर्म के परिपाक से देवों से पूज्य श्री गौतम गणधर सर्वसाधु समूह के प्रमुख हुए और सकलश्रुत के विधाता बने।
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