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वर्धमान जीवन - कोश
१६४
मलय टीका - सर्वे ब्राह्मणा जात्याः -- प्रशस्तजातिकुलोत्पन्नाः, तथा सर्वेऽध्यापका- उपाध्याया विदन्तीति विदो - विद्वांसः, चतुर्दशविद्यास्थानपारगमनात्, तानि चतुर्द्दश विद्यास्थानान्यमूनि: - “अङ्गानि वेदाश्चत्वारो, मीमांसा न्यायविस्तरः । धर्मशास्त्रं पुराणं च विद्या ह्येताश्चतुर्द्दशः ॥ १॥”
तत्राङ्गनि षट्, तद्यथा - शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्त छन्दो ज्योतिषं चेति, एष गृहस्था गम उक्तः, लोकोत्तरागमप्रतिपादनार्थमाह
सर्वे द्वादशाङ्गिनः, तत्र स्वल्पेनापि द्वादशाङ्गाध्ययनेन द्वादशाङ्गिनोऽभिधीयन्ते ततः सम्पूर्णद्वादशाङ्गज्ञापनार्थमाह-सर्वे चतुर्द्दशपूर्विणः ॥
इन्द्रभूति आदि सब गणधर ब्राह्मण थे-जिन का कूल प्रशस्त था । सब अध्यापक - उपाध्याय विद्वान थे। चतुर्दश विद्यास्थान के पारगत थे ।
लोकोत्तर आगम में सब गणधर द्वादशांगी के ज्ञाता थे- सब गणधरों ने स्वल्परूप से द्वादशांगी का अध्ययनः किया । इसके बाद संपूर्ण द्वादशांगी के चतुर्दश पूर्व के ज्ञाता थे ।
. ३७ भगवान् के परिनिर्वाण के समय — इन्द्रभूति और सुधर्म गणधर थे । परिनिब्बुया गणहरा जीवंते नायए नव जणा उ । इंदभूई सुहम्मो अ रायगिहे निव्वुए वीरे ॥ ६५८| - आव० निगा ६५८
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मलय टीका - जीवति ज्ञातके - ज्ञातकुलोत्पन्ने वीरे भगवति नव जनाः - इन्द्रभूतिसुधर्म्मस्वामिवर्णाः परिनिर्वृताः, इन्द्रभूतिः सुधर्मश्च स्वामिनी वीरे निवृते परिनिर्वृतिः, तत्रापि प्रथममिन्द्रभूतिः पश्चात्सुधर्म्मस्वामी, यश्च यश्च कालं करोति स स सुधर्म्मस्वामिनो गणं ददाति, तेषां तथाविधसन्तानप्रवृत्तिहेतुभूताचार्यासम्भवात्, सुधर्म्मस्वामी तु कालं कुर्वन् निजशिष्याय जम्बूस्वामिने गणं समर्पितवान् ।
श्रमण भगवान महावीर के समय में ही गौतम तथा सुधर्म गणधर को छोड़कर अवशेष गणधर का परिनिर्वाण हो चुका था । भगवान के परिनिर्वाण के बाद इन्द्रभूति तथा सुधर्म गणधर का परिनिर्वाण हुआ । फिर भी पहले इन्द्रभूति का तथा बाद में सुधर्म गणधर का परिनिर्वाण हुआ ।
जैसे जैसे काल गया—वैसे वैसे सुधर्म स्वामी गण देते रहे । सुधर्म स्वामी ने काल निकट जानकर जंबू स्वामी को गण का भार दिया ।
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