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४-भगवान महावीर और चतुर्विध संघ की उत्पत्ति ५-भगवान् महावीर की देशना ६-वर्धमान और शासन सम्पदा
१-भगवान् के ग्यारह गणधरों का विवेचन
२-आर्य चन्दना।
दिगम्बर सम्प्रदाय में भगवान् महावीर के चरित का विस्तृत वर्णन सर्वप्रथम गुणभद्राचार्य ने अपने उत्तर पुराण में किया है। तत्पश्चात् असग कवि ने वि सं० ११० में महावीर चरित का संस्कृत भाषा में एक महाकाव्य के रूप में निर्माण किया। इसके पश्चात् संस्कृत भाषा में प्रस्तुत महावीर चरित को लिखनेवाले भट्रारक सकल कीर्ति है। इस प्रकार संस्कृत भाषा में निबन्द्ध उक्त तीन चरित पाये जाते हैं।
प्राकृत भाषा में किसी भी दि. आचार्य ने महावीर चरित लिखा हो-ऐसा अभी तक ज्ञान नहीं हो सका है। हाँ, अपभूश भाषा में पुष्पदन्त लिखित महापुराण में महावीर चरित, जयमित्तहल्लका वडढमाणचरिउ, विवुध श्रीधर का वड्ढमाण चरिउ और रयधू कवि का महावीरचरिउ-इस प्रकार चार रचनायें पायी जाती है।
तीर्थकर स्वयं संबुद्ध होते हैं । भगवान् महाबोर स्वयं संबुद्ध थे। उन्हें अपने आप संबोधि प्राप्त हुई थी। उसके आधार पर उन्होंने विश्व के स्वरूप की समोक्षा और दार्शनिक विचारों की मीमांसा की। अस्तु सत्पुरुष उपकारी होते हैं तो फिर सर्व कृतज्ञ पुरुषों में शिरोमणि वर्धमान महावीर प्रभु की तो बात ही क्या ? तीथंकरों का यह नियम है कि वे किसी पुरुष विशेष को प्रणाम नहीं करते हैं । ( कल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी पृष्ठ १२७)।
तीर्थंकरत्व एक गरिमा पूर्णपद है। वह काम्य नहीं हुआ करता। वह तो सहज सुकृत संचयसे प्राप्त हो जाता है। तीर्थकरत्व प्राप्ति के लिए बीस निमित्त माने गये है। यधा१-अरिहंत की आराधना
११-षड् आवश्यक का विधिवत् समाचरण २-सिद्ध की आराधना
१२-ब्रह्मचर्य का निरतिचार पालन ३-प्रवचन की आराधना
१३-ध्यान ४-गुरु का विनय
१४-तपश्चर्या ५-स्थविर का विनय
१५-पात्रदान ६-बहुश्रुत का विनय
१६-वैयावृत्ति ७-तपस्वी का विनय
१५ --. समाधि-दान ८-अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग
१८-अपूर्व ज्ञानाभ्यास 8-निर्मल सम्यग् दर्शन
१६-श्रुत भक्ति १०-विनय
२०-प्रवचन प्रभावना गर्भहरण का प्रसंग दिगम्बर परम्परा में अभिमत नहीं है। कल्पसूत्र में संहरण-काल को भी अज्ञात बताया है। वह किसी अपेक्षा विशेष से ही यथार्थ हो सकता है। तत्वतः तो अवधि ज्ञान युक्त महावीर के लिए वह अगम्य नहीं हो सकता।
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