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वर्षमान जीवन-कोश
१३३ (ग) दिसयसंपण्णेण, भवणवासिय-वाणवेंतर-जोदिसिय-सोहम्मीसाणादिकप्पवासिय-चक्कवट्टि-बल. णारायण-विज्जाहर-रायाहिराय - मंडलीय-महामंडलीय इंदग्गि-वाउभूदि-सिंघ-वालादि-देव - मण व. मुणि-मई देहितो पत्त-पूजादिसयेण सम्मत्त-णाणे दंसण-वीरियावगाह-णागुरुवलहुअ-अव्वाबाहसुहुमत्तादिगुणेहि सिद्धसारिच्छेण वड्ढमाणभडारएण उवइत्तादो पमाणे वागमो । उत्त च । णिस्संसयकरो वीरो महावीरो जिण त्तमो। राग-दोस-भयादीदो धम्मतित्थस्स कारओ ।।
-कसापा० भा १/ गा १ । टीका । पृ०७१ से ७३ वर्धमान तीर्थकर-- पसीना, मल, रज अर्थात् बाह्य कारणों से शरीर पर चढ़ा हुआ मैल, नयन और कटाक्ष रूप वों का छोड़ना आदि शीरगत समस्त दोषों से रहित, समचतुरस्र संस्थान, घच ऋषभ नाराच सहनन, दिव्यगन्ध म्य प्रमाण रूप से स्थित नख और रोम, आभरणों से रहितपना, देदीप्यमान और सौम्य मुख, वस्त्र से रहितपना बोहर, आयुध से रहितपना, और अत्यन्त निर्भयपना आदि नाना गुणों से युक्त दिव्य देह को धारण करने वाले उग, द्वेष, कषाय और इन्द्रियों से तथा देव, मनुष्य, तिर्यच और अचेतनकृत चार प्रकार के उपमर्ग और बाइस जोषह आदि समस्त दोषों से रहित, एक योजन के भीतर दूस या समीप बैठे हुए नानादेश सम्बन्धी अठारह महा आषा और ( सात सौ) लघु भाषाओं से युक्त ऐसे देव, तिर्यञ्च और मनुष्यों को, अपनी २ भाषा रूप से परिणत तथा न्यूनता और अधिकता से रहित, मधुर, मनोहर, गम्भीर और विशद इन भाषाओं के अतिशयों से युक्त, भवनबासी, व्यंतर, ज्योतिषक और सौधर्म, ऐशान आदि कल्पवासी, चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण, विद्याधर, राजा, अधिराजा, मंडलीक, महामंडलीक, इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभुति सिंह, व्याल आदि देव-मनुष्य-मुनि और तियंचों के इन्द्रों से पूजा के अतिशयों को प्राप्त हुए और क्षायिक सम्यक्त्व, केवल ज्ञान, केवल दर्शन, अनंत वीयं, अवगाहनत्व बगुरुलघु अव्याबाध और सूक्ष्मत्वादि गुणों से सिद्ध के समान वर्धमान भट्टारक के द्वारा उपदिष्ट होने से द्रव्यगम प्रमाण है । कहा भी है
जिन्होंने धर्मतीथं की प्रवृति करके समस्त प्राणियों को निःसंशय किया, जो वीर हैं अर्थात् जिन्होंने विशेष से समस्त पदार्थ समूह को प्रत्यक्ष कर लिया है, जो जिनों में श्रेष्ठ है तथा राग, द्वेष और भय से रहित हैं ऐसे भगवान् महावीर धर्मतीर्थ के कर्ता है। ३ अन्यान्य आगमों से (क) इह खलु समणण भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तित्थगरेण सयंसंबुद्ध पुरिसोत्तमेग पुरिस
सीहेण पुरिसवरपोंडरीएण पुरिसवरगन्धहस्थिणा लोगोत्तमेण लोगनाहेण लोगहिएण लोगपईवेणं लोगपज्जोयगरेण अभयदएण चक्खुदएणं मग्गदएण सरणदएंण जीवदएण धम्मदएण धम्मदेसएण धम्मनायगेण धम्मसारहोणा धम्मवरचाउरंतचक्वट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदसणधरेण वियदृच्छउमेण जिणण' जावएण' तिण्णेण तारएणं बुद्धण बोहएण मुत्तण मोयगेण सव्वण्णुणा सव्वदरिसिणा सिवमयलमरुयमणंत - मक्खय - मव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेय ठाणं संपाविउकामेणं । -सम० सम १/सू २/-अण त्त० व ३/अ १०/सू ७५-नाया० श्रु १/१/सू ७जंबू० वक्खार ५
sikanemal
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