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प्रस्तावना
जैन दर्शन सूक्ष्म और गहन है तथा मूल सिद्धान्त ग्रन्थों में इसका क्रमबद्ध तथा विषयानुकम नहीं होने के गरण इसके अध्ययन में तथा इसके समझने में कठिनाई होती है। अनेक विषयों के विवेचन अपूर्ण अधूरे हैं अतः नक स्थल इस कारण से भी समझ में नहीं आते हैं। अर्थ बोध को इस दुर्गमता के कारण जन-अर्जन दोनों प्रकार विद्वान् जैन दर्शन के अध्ययन से सकुचाते हैं। क्रमबद्ध और विषयानुक्रम विवेचन का अभाव जैन दर्शन के अध्ययन सबसे बड़ी बाधा उपस्थित करता है-ऐसा हमारा अनुभव है ।
अध्ययन की बाधा मिटाने के लिए हमने जैन विषय कोश की एक परिकल्पना बनायी और उस परिकल्पना के अनुसार समग्र आगम ग्रन्थों का अध्ययन किया और उस अध्ययन के आधार पर सर्वप्रथम हमने विशिष्ट पारिभाषिक हानिक और आध्यात्मिक विषयों की एक सूची बनाई। विषयों की संख्या १००० से भी अधिक हो गई तथा इन विषयों का सम्यक् वर्गीकरण करने के लिए हमने आधुनिक सार्वभौमिक दशमलव वर्गीकरण करने का अध्ययन किया । तत्पश्चात् बहुत कुछ इसी पद्धति का अनुसरण करते हुए हमने सम्पूर्ण वाङ्मय को १०० वर्गों में विभक्त करके मूल विषयों को वर्गीकरण की एक रूपरेखा ( देखे पृष्ठ १०) की। यह रूपरेखा कोई अन्तिम नहीं है। परिवर्तन, परिवर्द्धन तथा संशोधन को अपेक्षा भी रह सकती है। मूल विषयों की सूची भी हमने तैयार की है। उनमें से जीव परिणाम ( मूल विषयांक .०४ ) की उपविषय सूची लेश्या कोश में दे दी गई है तथा कर्मवाद ( मूल विषयांक १२) वा कियावाद ( मूल विषयांक .१३ ) को उपसूची क्रियाकोश में दी गई है। जोव परिणाम, कर्मवाद तथा क्रियावाद वह उपसूची भी परिवर्तन, परिपद्धंन तथा संशोधन की धपेक्षा रख सकती है।
__ अस्तु प्रस्तुत ग्रन्ध-वर्धमान जीवन कोश-द्वितीय खण्ड में इस अवसर्पिणो काल के चौबीसवें तीर्थकर अयान के पूर्वभव का विवेचन है ही। साथ ही साथ वर्धमान महावीर भगवान् की स्तुति विषयक पाठों का भी विवेचन है। चतुर्विध संघ की उत्पत्ति भगवान महावीर की प्रथम तथा द्वितीय देशना, अन्तिम देशना का भी उल्लेख । भगवान महावीर के इन्द्रभूति आदि ग्यारह गणधरों का भी विवेचन है । आर्य चन्दना का भी प्रचुर मात्रा में लेख है। इस प्रकार पुस्तक बड़ी रोचक बन पड़ी है।
तीर्थकर वर्धमान-जीव द्वार ( जैन वाङमय का दशमलव वर्गीकरण संख्या • ०३ ) के अन्तर्गत तथा जीवनी ( जैन वाङमय का दशमलव वर्गीकरण संख्या ६२ ) के अन्तर्गत समाविष्ट है। हमने जीव द्वार के उपविषयों को सूची अलग-अलग दी है। (देखें पृष्ठ १३-१४ ) इन सूचियों में भी परिवर्तन, परिवर्द्धन तथा संशोधन की पेक्षा रह सकती है। जीव द्वार में वर्धमान नाम विषयांक ३५४ है तथा जीवनी में नाम शब्द विषयाफ ६२२४ है।
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