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वर्धमान जीवन-कोश इस प्रकार तीन बार बात को टकराकर पका किया।
मृगावती के साथ विवाह करने के लिए राजा ने राज्य सभा में उसे बुलाया । यह देखकर नगर के लोग लज्जित हुए। राजा ने गांधवं विधि से मृगावती के साथ स्वयंमेव विवाह किया।
यह देखकर लज्जा और क्रोध से आकुल होकर भद्रादेवी राजा को छोड़कर-अचलकुमार को साथ लेकर नगर के बाहर निकलो तथा दक्षिण की ओर प्रस्थान किया। अचलकुमार ने वहां माहेश्वरी नामक नवीन नगरी को बसाया। उसमें स्वयं की माता को रखकर स्वयं पिता के पास आया । उसका पिता (रिपुप्रतिशत्रु ) स्वयं ही पुत्रीरूप प्रजा का पति हुआ। इससे सर्वलोक उसे प्रजापति नाम से पुकारने लगे-"अहो ! कर्म की गति बड़ी बलवान है ?
७ त्रिपृष्ठ वासुदेव का अवतरण (क) महासुक्क उववन्नौ तओं चुओ पोअणपुरम्मि । पुत्तो पयावइस्सा मिगावई [देवी कुच्छिसंभवोभयवं ॥ नामेण तिविठ्ठ,त्ति आई आसी दसाराणं ।।
-आव० निगा ४४६ उत्तरार्ध/४४७ मलयटीका-ततो महाशुक्रात च्युतः, पोत्तनपुरे नगरे पुत्रः प्रजापतेः राज्ञः मृगावतीदेवीकुक्षिसम्भूतो. नाम्राः त्रिपृष्ठः, आदि:-प्रथम आसीत् दसाराणां ॥ तत्र वासुदेवत्वं च चतुरशीति वर्षशतसहस्राणि पालयित्वा अधः सप्तमनरकपृथिव्यामप्रतिष्ठाने नरके त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमस्थिति रकः संजात इति ।
भगवान महावीर का जीव महाशुक्र कल्प से च्युत होकर पोत्तनपुर नगर में प्रजापति राजा की मृगावती रानी के पुत्र रूप में जन्म लिया और त्रिपृष्ठ नामक प्रथम वासुदेव हुए और चौरासी लाख वर्ष का आयुष पाल कर सप्तम नरक के नारकी के रूप में उत्पन्न हुए। (ख) विश्वभूतिश्च्युतः शुक्रान्मृगावस्या अथोदरे । सप्तस्वप्नसमाख्यातविष्णु भावः समागमत् ।। ११८ ।।
तया च काले सुषुवे सुनुः प्रथमशाङ्गभृत् । त्रिकरंडकपृष्ठत्वात् त्रिपृष्ठ इति संज्ञितः ॥ ११६ ।। अशीतिधनुरुत्तुगो रममाणोऽचलेन सः । अधीतसकलकल क्रमेण प्राप यौवनम् ॥ १२० ।।
-त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग १ गभं के आगमन के समय मृगावती ने सात स्वप्न देखे ।
पृष्ठ भाग में तोन पासली थी अतः उसका नाम त्रिपृष्ठ रखा । शरीरावगाहना अस्सी धनुष की थी। (ग) अथास्मिन्नादिमे द्वीपे सुरम्यविषये शुभे । पोदनाख्ये पुरे भूपः प्रजापतिरभूच्छुभात् ॥ ६१ ।।
देवी जयावती तस्य तयोश्च्युत्वा दिवोजनि । विशाखभूतिराजाचरोऽमरो विजयाख्यतुक् ।। ६२ ॥ विश्वनन्दिचरोदेवः स्वर्गादेत्याभवरसुतः। तस्य राज्ञो मृगवत्यां त्रिपृष्ठाख्यो महाबली ॥ ६३ ॥
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