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________________ ६६८ पुद्गल-कोश जिसके अन्तर्गत कई महत्वाकांक्षी संकल्प घोषित हैं, भारतीय कोश रचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण देन है । कोशकारों के शब्दों में लेश्या कोश हमारी कोश परिकल्पना का परीक्षण है । अत: इसमें प्रथमानुभव की अनेक त्रुटियां हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है । प्रस्तुत कोश एक विशिष्ट कोश है । उन दिनों तीन प्रकार के कोश सामने आये हैं- १) विषय कोश, २) ग्रन्थकार कोश, ३) ग्रन्थ कोश | कोश सम्पादकों अनुसंधित्सुओं की उन कठिनाइयों का भी ध्यान रखा है जो किसी विषय के गहन अध्ययन अनुसंधान में व्यवधान उत्पन्न करती है । उन्होंने इस तरह के दो-तीन संस्मरण भी प्रस्तावना में दिये हैं । वैसे कोशकारों ने विशिष्ट पारिभाषिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक विषयों को एक व्यापक सूची बनायी थी और तदनुसार १००० विषय भी चुने थे, किन्तु बाद में उस तालिका को सीमित कर लिया गया और कुल १०० विषय हो निश्चित कर लिये गए । इन्हें विवृत्ति के लिये दार्शनिक पद्धति से योजित किया गया है । संकलन में तीन बातों का विशेष ध्यान रखा गया है । पाठों का मिलान विषयों के उपविषयों का वर्गीकरण, हिन्दी अनुवाद ।' इन सावधानियों से कोष अधिक उपयोगी बन गया है । प्रस्तावना केवल 'लेश्या कोष' की अनुभवों और कोषकारों को प्रयोगधर्मिता का ही विवरण नहीं है, अपितु इसके द्वारा कोषकारों ने अपनी सम्पूर्ण योजना ( प्रोजेक्ट ) को भी प्रस्तुत करें दिया है । वस्तुतः उक्त कोश के सम्पादन में कोशकारों को दृष्टिकोण सुम्पष्ट, निभ्रान्ति और वैज्ञानिक है । जैन विद्या के क्षेत्र में यह पहला कोश है, जिसने दार्शनिक पद्धति से विषयों का वर्गीकरण - प्रतिपादन किया है । कोश रचना की प्रक्रिया वैज्ञानिक प्रयोगधर्मी और समीचीन तो है ही, रोचक और सुविधाजनक भी है । कोश १९६६ ई० में प्रकाशित हुआ है | सम्पादक परम्परावादी नहीं प्रयोगधर्मी है । कोश रायल आकार में मुद्रित है । इसमें कुल ३९६ पृष्ट हैं । आरम्भ में एक सार्थक प्रस्तावना है, जिसमें कोशकारों ने कोश की उपादेयता, पद्धति, प्रक्रिया और उपयोगिता पर प्रकाश डाला है । साथ साथ ही उस परिकल्पना को भी स्पष्ट किया है जो कोश की जननशीलता - जैनरेटिवनेस का द्योतक है । इस तरह यह कोश एक पड़ाव है अन्तिम गन्तव्य नहीं है । मूलतः कोशकारों की एक बृहत् योजना है, प्रस्तुत कोश जिसकी एक नगण्य किस्त है । प्रस्तावना से लगा हुआ श्री नथमल टांटिया का प्राक्कथन है, जिसमें उन्होंने कोश की उपयोगिता और उसकी विशिष्टताओं का उल्लेख किया है। हीराकुमारी ने आमुख लिखा है, जिसमें अनेक संभावनाओं, योजनाओं और परिकल्पनाओं को दिया गया है । आमुख का व्यक्तित्व समीक्षात्मक है । कुल मिलाकर 'लेश्या कोश' एक ऐसा संदर्भ ग्रन्थ है, जिसने न केवल जैन विद्या, अपितु प्राच्य विद्या को भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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