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पुद्गल-कोश ___ अन्त में ऐसे व्यवस्थित एवं उपयोगी लेखन और प्रकाशन के लिये लेखक एवं प्रकाशन का अभिनन्दन करते हैं और आशा करते हैं कि जैन रत्नाकर के अनेक अनमोल रत्नों का प्रकाश में लाने के लिने अपने चिन्तन-मनन और स्वाध्याय का सदुपयोग करके जैन वांगमय को समृद्ध व सम्पन्न बनायेंगे।
-श्रमणोपासक
अप्रैल १९६९ प्रस्तुत ग्रन्थ में लेश्याओं के सम्बन्ध में सांङ्गोपांग विवेचन प्रस्तुत किया है। जैनधर्म में लेश्याओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनमे से द्रव्यलेश्या शरीर के वर्ण को कहते हैं तथा भावलेश्या कषायों के तीव्रतम, तीव्रतर, तीव्र, मंद, मंदतर, मंदतम परिणामों को कहते हैं। जैन ग्रन्थों में इनका यत्र-तत्र विशद विवेचन है किन्तु सर्वांगपूर्ण विवेचन एकत्र नहीं मिलता है। अतएव विद्वान सम्पादकों ने अपने अथक परिश्रम पूर्वक श्वेताम्बर जिनागमों से इसका महत्त्वपूर्ण संकलन किया है । दिगम्बर आगमों से भी संकलन करने का उनका अपना विचार है। इसमें विषय, शब्द विवेचन, द्रव्यलेश्या, भावलेश्या, सलेशी जीव, लेश्या और विविध विषय, फुटकर पाठ मादि विविध अंगों पर विस्तृत विचार किया है। इस विषय पर एकत्र समीकरण करने का यह प्रथम प्रयास श्लाघनीय है।
- सन्मति संदेश, जनवरी १९६९ जैन दर्शन में छः लेश्यायें प्रसिद्ध है।, लेश्या-यह आत्मा का परिणाम विशेष है। जहाँ-जहाँ लेश्या सम्बन्धी विवेचन प्राप्त हुआ है उसका संकलन किया है । ग्रन्थ बहुत सुन्दर बना है ।
-सुघोषा
जनवरी १९६९ जैन दर्शन का शोधकर लेश्या-कोश एक महान ग्रन्थ बन गया है । शोधार्थियों के लिए अत्यन्त उपादेय है।
-कच्छी दशा ओसवाल प्रकाश
मार्च १९६९ जैन दर्शन सूक्ष्म और गहन है । इस लेश्या-कोश में सम्पादकों ने लेश्या सम्बन्धित पाठों को एकत्रित कर क्रमबद्ध विवेचन किया है। लगभग ५० पुस्तकों या उद्धरण दिया है। जैन दर्शन के अभ्यासियों के लिए यह कोश अत्यन्त उपादेय है। इस तरह सम्पादकों ने अन्य विषयों का भी संकलन किया है ।
-जेन प्रकाश फरवरी २३-२-६९
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