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पुद्गल-कोश
जहाँ उनके सम्बन्ध में नातिदीर्घ परिचय प्रस्तुत हो वहाँ उनके विभिन्न नियम-उपनियमों का भी विश्लेषण किया जाये, ताकि विभिन्न दृष्टियों से उनके आचार पर पूर्ण प्रकाश पड़ सके।
-श्रमण-१९६६
__ जैन दर्शन अत्यन्त सूक्ष्म और गहन है। उसमें सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों धरातलों पर जीवन के विविध पक्ष उद्घाटित हुए हैं पर उसमें क्रमबद्धता न होने से अध्येता को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वर्षों से यह अनुभव किया जा रहा था कि जैन दर्शन के विविध विषयों के कोश प्रकाशित किये जांय। श्री बांठियाजी के अध्यवसाय व अथक प्रयास से यह युगान्तरकारी कार्य अब सम्पन्न होने जा रहा है। प्रथम चरण के रूप में यह लेश्या कोश हमारे सामने आया है। इसमें शब्द विनेचन, द्रव्य लेश्या (प्रायोगिक, विस्रसा), भाव लेश्याः लेश्या और जीव, सलेशी जीव, विविध आदि मूल वर्गों में विभाजित कर, प्रत्येक वर्ग को कई उपवर्गों में बांट कर, जैन आगमों में इतस्त: लेश्या सम्बन्धी बिखरे हुए प्रसंगों को एक स्थान पर सयोजित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया गया है। मूल पाठ का शब्दार्थ व यथाप्रसंगानुसार विवेचनात्मक अर्थ देकर ग्रन्थ को सर्व साधारण के लिए उपयोगी बना दिया गया है। यह ग्रन्थ प्रत्येक पुस्तकालय, शोध केन्द्र व दर्शन के अध्येता के लिए समान रूप से उपयोगी है। इस महत्वपूर्ण प्रकाशन के लिये सम्पादक और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं।
-डॉ. नरेन्द्र मानावत (जिनवाणी-फरवरी १९६९)
जैन विषय कोश ग्रन्थमाला का यह प्रथम पुष्प है व जैन दशमलव वर्गीकरण ०४०४ है। इस कोश की रचना २३ श्वेताम्बर जैन ग्रन्थ व कुछ दिगम्बर ग्रन्थों से की गई है। इसमें ६ लेश्या-कृष्ण, नौल, कापोत, पीत, पद्म और शुक्ल लेश्या अर्थात् छ प्रकार के परिणामों के हजारों भेद बताये गये हैं। लेश्या शब्द का विवेचन द्रव्य लेश्या, भाव लेश्या, लेश्या और जीव, सलेश जीव व विविध मिल ९ मूल वर्गों में से शब्द विवेचन ८ उपवर्गों में, द्रव्य लेश्या (प्रायोगिक ) व ९ उपवर्गों में द्रव्य लेश्या (विस्रसा) व उपवर्गों में, भाव लेश्या ९ उपवर्गों में, लेश्या और जीव ९ उपसर्गों में सलेशी जीव २९ उपसर्गों में तथा विविध ९ उपसर्गों में विभाजित करके उनपर विस्तृत विवेचन किया है ।
आजतक ऐसा लेश्या कोश प्रथम ही प्रकट हुआ है। लेश्या का अर्थ मनुष्यों के परिणाम है व ६ लेश्या के वृक्ष की कथा तो सारे जैन समाज में प्रचलित है,
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