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पुद्गल-कोश
"Please forgive me for the delay in acknowledging the receipt of your excellent gift of the Lesya-Kosa. This is an extraordinary work and you deserve our gratitude for publishing it. You have opened a new field of research and have established a new model for all future Jain studies. The subject is fascinating not only for its antiquity but also for its value in the study of Indian Psychology."
लेश्या कोश पर विद्वानों की सम्मति
लेश्या कोश - सम्पादक द्वय श्री मोहनलाल बांठिया, श्री श्रीचन्द चौरड़िया, प्रकाशक - मोहनलाल बांठिया, १६/सी, डोवर लेन, कलकत्ता - २९, प्र० बर्ष -- ६६ मूल्य - १०रु० ।
आलोच्य पुस्तक जैन दर्शन के एक पारिभाषिक शब्द 'लेश्या' का क्रमबद्ध विषयानुक्रमिक पाठ - संकलन और उन पाठों की यथोचित व्याख्या प्रस्तुत करती है । इसके संपादक द्वय, ने तत्वार्थसूत्र तथा ३२ श्वेताम्बर जैन आगमों में यत्र-तत्र बिखरे हुए लेश्या सम्बन्धी महत्वपूर्ण पाठों का एक ही पुस्तक में संलग्न कर जैन दर्शन के शोधकर्त्ता व जिज्ञासु विद्वद्वर्ग के लिए एक अमूल्य निधि तैयार की है । ऐसे तो इस पुस्तक का मूल्य १० रु० रखा गया है, किन्तु जैन दर्शन के अनेक विद्वानों को यह पुस्तक निःशुल्क बांटने का निश्चय इसके प्रकाशक महोदय ने किया है। इस प्रकार प्रकाशक महोदय, जो जैन दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान हैं और जिनका जीवन सार्वजनिक लौकिक कार्य में हमेशा से समर्पित रहा है, विशेष बधाई के पात्र हैं ।
उत्तराध्ययन सूत्र अध्याय ३१ की गाथा ८ इस प्रकार है—
लेसासु छसु काएसु, छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥
अर्थात् "जो साधु छः लेश्या, खः काय तथा आहार करने के छः कारणों से सदा सावधानी बरतता है वह भव-भ्रमण नहीं करता । "
इसी तरह आवश्यक सूत्र अध्याय ४ के सूत्र ६ की हारिभद्रीय टीका में गाथा
उद्धृत है
एसइयारो एया-सुहोई, तस्स य पडिक्कमामिति । पडिकूलं वट्टामी, जं भणियं पुणो न सेवेमि ॥
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