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पुद्गल-कोश
द्रव्य से गलित व वियुक्त होते हैं और अपने संयोग से द्रव्य को पुष्ट करते हैं,
वे पुद्गल है ।
(ग) पूरणाद्गलनाच्च शरीरादीनां पुद्गलः ।
जिसके शरीर आदि बनते हैं और बिखरते रहते हैं वह पुद्गल है ।
पुद्गल और दंडक के जीव
नेरइया णं पंचवन्ने पंचर से पोग्गले बंधेसु वा बंधंति वा बंधिस्संति वा, तं जहा - किण्हा जाव सुक्किल्ला तित्तं जाव मधुरे, एवं जाव वेमाणिता । - ठाण० स्था ५ । उ ३ सू २२८, २२९
- भटी० पृ० १४३२
नैरयिकों ने पांच वर्ण तथा पांच रस वाले पुद्गलों का बंधन ( कर्म रूप से स्वीकरण ) किया है, कर रहे हैं तथा करेंगे ।
१ कृष्णवर्ण वाले, २ नीलवर्ण वाले, ३ लोहितवर्ण वाले, ४ हारिद्रवणं वाले तथा ५ शुक्लवर्ण वाले ।
१ तिक्तरस वाले, २ कटुरस वाले, ३ कषायरस वाले, ४ अम्लरस वाले और ५ भधुररस वाले ।
इसी प्रकार वैमानिकों तक के सारे ही दंडक जीवों ने पांच वर्ण तथा पांच रस वाले पुद्गलों का बंधन ( कर्म रूप में स्वीकरण ) किया है, कर रहे हैं तथा करेंगे । शरीर के वर्णादि
रइयाणं सरोरगा पंचवन्ना पंचरसा पन्नत्ता, तंजहा - किण्हा जाव सुकिल्ला, तित्ता जाव मधुरा, एवं निरंतरं जाव वेमाणियाणं ।
पंच सरीरया पन्नत्ता, तंजहा -ओरालिते, वेउव्विते आहारते, तेयते कम्मते, ओदालितसरीरे पंचवन्ने पंचर से पद्मत्त, तजहा - किन्हे नाव सुक्किले तित्ते जाव महुरे, एवं जाव कम्मगसरीरे, सव्वेवि णं बादरवोंदिधरा कलेवरा पंचवण्णा, पंचरसा, दुगंधा, अट्ठफासा ।
- ठाण० स्था ५ । उ १ सू २३, २४
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