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पुद्गल-कोश
चन्द्रादीनामनुष्णः प्रकाश मण्यादीना रश्मिः
सर्व एव एते पुद्गलधर्माः अत एतद्वानपि पुद्गलः ।
उद्योतः ।
प्रभा ॥
— जैन सिदी ० प्र १ । सू १५ । टीका
तम -- पुद्गलों का सघन कृष्णवर्ण के रूप में जो परिणमन होता है, उसे तम कहते हैं ।
सूर्य के उष्ण प्रकाश को आतम कहते हैं ।
पुद्गलों का प्रतिबिम्ब रूप परिणमन होता है, उसे छाया कहते हैं ।
चन्द्र आदि के शीतल प्रकाश को उद्योत कहते हैं ।
रत्न आदि की रश्मियों को प्रकाश कहते हैं ।
ये सब ( शब्दादि से प्रभातक ) पुद्गल के धर्म हैं । ( स्कंधपुद्गल में ये सब मिलते हैं, परमाणु पुद्गल में नहीं ) इसलिए इनका पुद्गल के लक्षण रूप में निर्देश किया गया है ।
स्कन्दन्ति - शुष्यन्ति धीयन्ते च पोष्यन्ते च पुद्गलाना विचटनेनचटनेन स्कन्धाः ।
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- उशाटी० पृ० ६७३
जो पुद्गलों के विघटन से क्षीण और संघटन से पुष्ट होते हैं वे स्कंध हैं ।
पुद्गल के गुण
टीका- पूरणगल नधर्मत्वात् पुद्गल इति ।
स्पर्शरसगन्धवर्णवान् पुद्गलः ||१४||
जो द्रव्य स्पर्श, रस, गन्ध और वणं युक्त होता है वह पुद्गल है |
- जैनसिदी ० प्र १ स १४
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