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पुद्गल-कोश
७ शब्द
सं हन्यमानानां भिद्यमानानां च पुद्गलानां ध्वनिरुपः परिणामः शब्दः । प्रायोगिको वैत्रसिकश्च । प्रयत्नजन्यः प्रायोगिक :- भाषात्मकोऽभाषात्मको वा । स्वभावजन्यो वस्त्रसिकः- मेघादिप्रभवः ।
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अथवा जीवाजीव मिश्रभेदादय त्रेधा ।
मूर्तोऽयं नहि अमूर्त्तस्य आकाशस्य गुणो भवति श्रोत्रेन्द्रियग्राह्यत्वात् न च श्रोत्रन्द्रियममूत्तं गृहणाति इति ।
— जैन सिदी ० प्र १ । सू १५ टीका
पुद्गलों का संघात और भेद होने से जो ध्वनि रूप परिणमन होता है, उसे शब्द कहते हैं । वह दो प्रकार का है - प्रायोगिक और वैस्रसिक। किसी प्रयत्न के द्वारा होने वाला शब्द प्रायोगिक है । वह दो प्रकार का है— भाषात्मक और आभाषात्मक | स्वभाव जन्य शब्द को वैस्रसिक कहते हैं, जैसे- मेघ का शब्द |
प्रकारान्तर से शब्द के तीन भेद किए जाते हैं— जैसे—जीव शब्द, अजीव शब्द और मिश्र शब्द |
शब्द अमूर्त - आकाश का गुण नहीं हो सकता, क्योंकि इसे श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा ग्रहण किया जाता है । श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा अमूर्त विषय का ग्रहण नहीं हो सकता । इससे यह सिद्ध होता है कि शब्द मूर्त है । मूर्त द्रव्य अमूर्त आकाश का गुण नहीं हो सकता |
शब्दो द्विविधः भाषालक्षणो विपरीतश्चेति । भाषालक्षणो द्विविधः साक्षरोऽनक्षरश्चेति । अक्षरीकृतः शास्त्राभिव्यञ्जकः संस्कृतविपरीतभेदादार्यम्लेच्छव्यवहारहेतुः । अनक्षरात्मको द्वीन्द्रियदीनामतिशयज्ञानस्वरूपप्रतिपादन हेतुः । स एष सर्वः प्रायोगिकः । अभाषात्मको द्विविधः प्रायोगिको वैत्रसिकश्चेति । वैत्रसिको वलाहकादिप्रभवः । प्रायोगिकश्चतुर्धा, ततविततधनसौषिरभेवात् ।
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- सर्वार्थसिद्धि अ ५ । सू २४ | टीका
भाषा रूप शब्द और अभाषा रूप शब्द - इस प्रकार शब्दों के दो भेद हैं । भाषात्मक शब्द दो प्रकार का है- - साक्षर व अनक्षर। और जिसमें आर्य और म्लेच्छों का व्यवहार चलता है इससे विपरीत शब्द ये सब साक्षर शब्द है ।
जिसमें शास्त्र रचे जाते हैं और ऐसे संस्कृत शब्द और जिससे उनके सातिशय ज्ञान के स्वरूप
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