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पुद्गल-कोश
५-आयत-लकड़ी जैसा लम्बा आकार ।
६-अनित्थंस्थ-अनियत आकार अर्थात् परिमंडल आदि से भिन्न विचित्र प्रकार का आकार।
नोट-जो संस्थान जिस संस्थान की अपेक्षा बहुप्रदेशावगाही होता है, वह स्वाभाविक रूप से थोड़ा होता है । परिमंडल संस्थान जघन्य बीस प्रदेशावगाही होता है और वृत्त, चतुरस्र, त्र्यम्र और आयत संस्थान जघन्य से अनुक्रमशः पांच, चार, तीन और दो प्रदेशावगाही होता है । अतः परिमंडल संस्थान बहुप्रदेशावगाही होने से सबसे थोड़े हैं। उससे वृत्त आदि संस्थान अल्प: अल्पप्रदेशावगाही होने के कारण संख्यातगुण अधिक-अधिक होते हैं। अनित्थंस्थ संस्थान वाले पदार्थ, परिमंडल आदि द्वयादि संयोग वाले होने से उनसे बहुत अधिक होते हैं। इसलिए यह उन सबसे असंख्यातगुण अधिक है।
प्रदेश की अपेक्षा अल्पबहुत्व इसी प्रकार है। क्योंकि प्रदेश द्रव्यों के अनुसार होते हैं और इसी प्रकार द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ रूप से भी अल्पबहुत्व जानना चाहिए । किन्तु द्रव्यार्थ रूप से अनित्थस्थ संस्थान से परिमंडल प्रदेशशार्थ रूप से असंख्यातगुण है। •४ पुद्गल की अपेक्षा जीव के भेद जीवच्चेव x x x सपोग्गला चेव अपोग्गला चेव ।
-ठाण० स्था २ । उ १ । सू ५७ टोका-सपुद्गलाः कर्मादिपुद्गलवन्तो जीवाः, अपुद्गलाः-सिद्धाः।
जीव के दो भेद हैं-(१) सपुद्गला-कर्मादिपुद्गल सहित अर्थात् संसारी जीव और (२) अपुद्गला-सिद्धजीव ।
नोट-जीव-जीवास्तिकाय के अभिवचन में एक नाम 'पोग्गले' है अर्थात् पुद्गल है । ( भग० २० उ २ । सू १७ ) '५ पुद्गल द्रव्य का कार्य
स्पर्शरसवर्णगन्धा, शब्दो, बन्धोऽथ सूक्ष्मता, स्थौल्यम् । संस्थान
भेवतमश्छायोद्योतातपश्चेति ॥२१६॥
-प्रशयरति० प्रक० ९
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