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________________ ६३२ पुद्गल-कोश कइ णं भंते ! संठाणा पण्णत्ता ? गोयमा! पंच संठाणा पण्णत्ता, तंजहा-परिमंडले जाव आयते । -भग० श २५ । उ ३ । सू ३७ (पुद्गल ) संस्थान के पांच प्रकार है-यथा-परिमंडल वृत्त, व्यस्र, चतुरस्र और आयत । संस्थान कइ णं भंते ! संठाणा पन्नत्ता। गोयमा ! पंच संठाणा पन्नत्ता, तंजहा-परिमंडले, वट्ट, तंसे, चउरसे, आयए य।। - पण्ण० प १० । सू ३६६ संस्थान के पांच प्रकार है, यथा-(१) परिमंडल, (२) वृत्त, (३) व्यस्र, (४) चतुरस्र और (५) आयत । संस्थान की संख्या परिमंडला णं भंते ! संठाणा कि संखेज्जा? असंखेज्जा ? अणता? गोयमा ! णो संखेज्जा, णो असंखेज्जा, अणंता ? वट्टा णं भंते ! संठाणा कि सखेज्जा ? एवं चेव, एवं जाव आयता। -भग० श २५ । उ ३ । सू ६, ७ परिमंडल संस्थान संख्यात नहीं है, असंख्यात नहीं है, अनंत है। इसी प्रकार वृत्त यावत् आयत संस्थान-संख्यात नहीं है, असंख्यात नहीं है, अनंत है। द्रव्यतः संख्या परिमंडला णं भंते ! संठाणा कि संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता। एवं जाव आयया। -पण्ण० प १० । सू ३६७ परिमंडल संस्थान संख्यात नहीं है, असंख्यात नहीं है परन्तु अनंत हैं। इसी प्रकार वृत्त आदि सभी संस्थान के विषय में जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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