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पुद्गल-कोश .३ किस प्रकार के कर्मद्रव्यवर्गणा के पुद्गलों का अपवर्तन
उद्वर्तन-संक्रमण-निधत्तन-निकाचन होता है
[ नेरइयाणं भंते ! कइविहा पोग्गला ] उबट्टिसु उन्वति उध्वट्टिसंति। संकामिसु, संकामेंति, संकामिस्संति। णिहत्तिसु णिहतेति णिहत्तिस्संति। णिकायिसु णिकायिति, णिकायिस्संति । सम्वेसु वि कम्मदव्यवग्गणमहिकिच्च। [ दुविहे पोग्गले, तंजहा–अणू चेव बायरा चेव] ।
-भग• श १ । उ १ । सू २४ । पृ० ७ नारकी कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा अणु ( सूक्ष्म ) तथा बादर (स्थूल ) दो प्रकार के पुद्गलों का अपवर्तन, ( उद्वर्तन ), संक्रमण, निधत्तन तथा निकाचन किया है, करता है, करेगा।
नारको जीव की तरह दंडक के अन्य जीव भी अणु तथा बादर कर्मद्रव्यवर्गणा के पुद्गलों का अपवर्तन, ( उद्वर्तन ), संक्रमण, निधत्तन तथा निकाचन किया है, करता है, करेगा। xxx तहा भाणियन्वा सव्वजीवाणं ॥३२॥
-भग० श १ । उ १ । सू ३२ । पृ. ९ नारकी की तरह सब जीव दंडकों के विषय में कहना। ९४ पुद्गल और अचित्त वायुकाय
पंचविधा अचित्ता वाउकाइया पन्नत्ता, तंजहा–अक्कंते घेते पीलिए सरीराणुगते संमुच्छिमे।
-ठाण. स्था ५ । सू ४४४ टीका-आक्रान्ते पादादिना भूतबादो यो भवति स आक्रान्तो यस्तु ध्याते इत्यादौ स ध्यातः णदावस्त्रे निष्पीड्यमाने पीडित उद्गारोच्छ वा. सादिः शरीरानुगतः, व्यंजनादिजन्यः सम्मूच्छिमः।
टोका-एते च पूर्वकचेतनास्ततः सचेतना अपि भवतेति । अचित्त वायु काय पांच प्रकार का होता है१–आक्रान्त-परों को पीट-पीट कर चलने से उत्पन्न हुआ है ।
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