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पुद्गल-कोश
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जैसे सभी परमाणु पुद्गल । उनसे क्षेत्र से अप्रदेशी पुद्गल असंख्यातगुणे हैं । जैसे -- एक - एक आकाश प्रदेश पर अवगाहन करने वाले पुद्गल । कहा है
ठाणे ठाणे वडइ भावाईण णं अप्पएसाणं । तं चिय भावाईणं परिभस्सइ सप्पएसाणं ॥
अर्थात् स्थान-स्थान पर जो भावादिक अप्रदेशों की वृद्धि होती है वही भावादिक प्रदेशों की हानि होती है । इस प्रकार समझ लेना चाहिए ।
·५४ परमाणु- स्कंध की परस्पर अल्पबहुत्व
एयस्स णं भंते ! दव्वद्वाणाउयस्स खेत्तद्वाणाउयस्स, ओगाहणट्ठाणाउयस्स भावद्वाणाउयस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा ? ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा ?
बहुया वा
गोयमा ! सव्वत्थोवे खेत्तट्ठाणाउए, ओगाहणद्वाणाउए असंखेज्जगुण, दव्वद्वाणाउए असंखेज्जगुणे, भावद्वाणाउए असं खेज्जगुणे ।
- भग० श ५ | उ ७ । सू १८१
सबसे थोड़े क्षेत्रस्थानायु है, उससे अवगाहना स्थानायु असंख्यगुण है, उससे द्रव्यस्थानायु असंख्यगुण है, और उससे भावस्थानायु असंख्यगुण है ।
संगणी गाहा
खेत्तोगाहणादव्वे, भावद्वाणाउय च अप्प - बहुं । खेत्ते सन्वत्थोवे, सेसा ठाणा असंखेज्जगुणा ॥
गाथा का अर्थ इस प्रकार है- क्षेत्र, अवगाहना, द्रव्य और भाव स्थानायु इनका अल्पबहुत्व कहना चाहिए। इनमें क्षेत्र स्थानायु सबसे अल्प है और बाकी तीन स्थान क्रमशः असंख्यगुण है ।
नोट – क्योंकि क्षेत्र अमूर्तिक होने के कारण उसके साथ पुद्गलों के बंध का कारण 'स्निग्धत्व' न होने से पुद्गलों का क्षेत्रावस्थान काल सबसे थोड़ा है । एक क्षेत्र में स्थित पुद्गल दूसरे क्षेत्र में जाने पर भी उसकी वही अवगाहना रहती है । इसलिए क्षेत्रस्थानायु की अपेक्षा अवगाहना स्थानायु असंख्यगुण है । अवगाहना को निवृत्ति हो जाने पर भी द्रव्य लम्बे काल तक रहता है । अतः अवगाहना स्थानायु की अपेक्षा द्रव्यस्थानायु असंख्यगुण है । द्रव्य की निवृत्ति होने पर भी
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