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निगोद अर्थात् शरीर ( औदारिक शरीर ) । एक समान अवगाहनावाली असंख्याती निगोद का एक गोला बनता है अर्थात् एक सरीखी अवगाहना वाली असंख्याती निगोद समूह को गोला कहा जाता है । प्रत्येक जीव की, निगोद की व गोले की अवगाहना एक समान कही है । "
शुभ योग से पुण्य तथा निर्जरा दोनों होते हैं । होता है, फिर निर्जरा होती है । आवश्यक वृत्ति में बार अकामनिर्जरा करता हुआ ग्रंथी देश तक आ करण को प्राप्त कर लेता है ।
अस्तु श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के पुस्तकाध्यक्षों तथा जैन भवन के पुस्तकाध्यक्षों के हम बड़े आभारी हैं जिन्होंने हमारे सम्पादन के कार्य में प्रयुक्त अधिकांश पुस्तकें हमें देकर पूर्ण सहयोग दिया ।
गणाधिपति गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी तथा आचार्य महाप्रज्ञ तथा महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी की महान् दृष्टि हमारे पर रही है जिसे हम भूल नहीं सकते | युगप्रधान आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने प्रस्तुत कोश पर अपने व्यस्त समय आशीर्वाद लिखा हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं ।
इन दोनों में पूर्व पुण्य का बंध कहा है कि अभव्य जीव अनेक जाता है अर्थात् यथा-प्रवृत्ति
कलकत्ता युनिवर्सिटी के भाषा विज्ञान के प्राध्यापक डा० सत्यरंजन बनर्जी को हम सदैव याद रखेगें जिन्होंने हमारे अनुरोध पर पुद्गल कोश पर भूमिका लिखी ।
हम जैन दर्शन समिति के सभापति श्री गुलाबमल मंडारी, मन्त्री श्री सुशील कुमार जैन, उपमंत्री सुशीलकुमार बाफणा, श्री हीरालाल सुराणा, श्री नवरतनमल सुराना, श्री मांगीलाल लूणिया, श्री इन्द्रमल भण्डारी, श्री केवलचन्द नाहटा, श्री बच्छराज सेठिया, श्री गुलाबचन्द्र चोरड़िया आदि सभी बन्धुओं को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने हमारे विषय कोश की परिकल्पना में किसी न किसी रूप में सहयोग प्रदान किया ।
कलकत्ता - पार्श्वनाथ जयन्ती
दिनांक १ जनवरी सन् २०००
१ प्रकरण रत्नावली पृ० ४३, ४४ ।
२. कल्पभाष्य ।
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श्रीचन्द चोरड़िया, न्यायतीर्थ ( द्वय )
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