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________________ पुद्गल - कोश गोमा ! एगगुणकक्खडाइ पि आहारति जाव अनंतगुणकक्खडाई पि आहारति । एवं अट्ठवि फासा भाणियव्वा जाव अनंतगुणलुक्खाई पि महारेंति । ५५४ - पण्ण० पद २८ । सू १८०० नारकी एक गुण कर्कश स्पर्श वाले पुदगलों का आहार करते हैं यावत् अनंतगुण कर्कश स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं । इसी प्रकार क्रमशः आठों की स्पर्शो के विषय में यावत् एक गुण यावत् अनंतगुण रूक्ष पुद्गलों का आहार करते हैं । -७९ असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार देव के आहार के पुद्गल -२ ( असुरकुमाराणं भंते ) एवं जहा णेरइयाणं तहा असुरकुमारणवि भाणियव्वं x x x । उसण्णं कारणं पडुच्च वण्णतो हालिद्दसुविकलाई, गंधतो सुभगधाई, रसतो अंबिलमहुराई, फासतो मउअलहुयनिद्ध व्हाति । तेसि पोराण वण्णगुणे जाव फासिंदियत्ताए जाव मणामत्ताए इच्छियत्ताए भिज्भियत्ताए उड्डत्ताए णो अइत्ताए सुहत्ताते णो दुहत्ताते एतेसि भुज्जो भुज्जो परिणति x x x । एवं जाव थणियकुमाराणं । - - पण्ण० पद २५ । सू १८०१ Jain Education International • •३ पृथ्वीकायिक से वनस्पतिकायिक ( पुढविकाइयाणं ) एवं जहा णेरइयाणं x x x नवरं उसण्णं कारणं ण भण्णंति, वण्णतो काल नील लोहित हालिद्द सुक्किलाति, गंधतो सुब्भिगंध दुब्भिगंधाति, रसतो तित्तरसाई कहुअरसाई, कसाय अंबिलमहुराई, फासतो कक्खड फास गुरुय लहुय सीत- उसिन- णिद्धलुक्खाति x x x एवं जाव वणफतिकाइयाणं । - पण्ण० पद २८ । सू १८०२ वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय ( वेइ दियाणं ) xxx सेसं जहा पुढविकाइयाणं xxx । एवं जहा चउरिदिया णं । --- - पण्ण० पद २८ । सू १८०३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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