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पुद्गल-कोश आबाहं वा वावाहं वा छविच्छेदं वा अकीरमाणं पासित्ता सीओसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरइ, साओसीणं तेयलेस्सं पडिसाहरित्ता मम एव वयासी -से गयमेयं भगवं से गयमेयं भगवं गत-गतमेयं भगवं ?
-भग• श १५ । सू ६५
मेरी शीतलतेजोलेश्या से अपनी उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात हुआ और गोशालक के शरीर को किंचित् भी पीड़ा अथवा अवयव का छेद नहीं हुआ जानकर, वैश्यायन बालतपस्वी ने अपनी उष्णतेजो लेश्या को पीछे खींचली और मेरे प्रति इस प्रकार बोला- हे भगवान् ! मैंने जाना ! हे भगवान ! मैंने जाना।
संक्षिप्त-विपुल तेजो लेश्याको प्राप्ति
कह णं भंते ! संखित्तविउलतेयलेस्से भवइ ? तए णं अहं गोयमा ! गोसालं मंखिलपुत्तं एवं वयासी-जेणं गोसाला! एगाए सणहाए कुम्मासपिडियाए एगेण य वियडासएणं छ8छ?णं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिझिय-पगिझिय जाव विहरइ, से ण अंतो छण्हं मासाणं संखित्तविउलतेयस्से भवइ ।
-भग० श १५ । सू ७०
नख सहित बंद की हुई मुट्ठी में जितने उड़द के वाकुले आवे उतने मात्र से और एक विकटाशय (चुल्लुभर ) पानी से निरन्तर छट्ठ-छ? की तपस्या के साथ दोनों हाथ ऊँचे रखकर यावत् आतापना लेने वाले पुरुष को छह मास के अंत में संक्षिप्तविपुल लेश्या प्राप्त होती है । ___ नोट-तेजो लेश्या अप्रयोग काल में संक्षिप्त होती है और प्रयोग काल में विपुल होती है। ___ x x x सोलसण्हं जणवयाणं, तंजहा–१ अंगाणं, २ वंगाणं, ३ मगहाणं, ४ मलयाणं, ५ मालवगाणं, ६ अच्छाणं, ७ वच्छाणं, ८ कोच्छाणं, ९ पाढाणं, १० लाढाणं, ११ वज्जाणं, १२ मोलोणं, १३ कासीणं, १४ कोसलाणं, १५ अवाहाणं, १६ संभुतराणं घायाए, बहाए, उच्छादणयाए, भासीकरणयाए।
-भग• श १५ । सू १२१
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