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पुद्गल - कोश
तिपएसिया । अट्ठपएसिया जहा चउपएसिया । नवपएसिया जहा परमाणुपोग्गला । दसपएसिया जहा दुपएसिया । [ सू १७८ ]
संखेज्जपए सियाणं - पुच्छा । गोयमा ! ओघदेसेणं सिय कडजुम्मा जाव - सिय कलिओगा । विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव- - कलिओगा वि ।
एवं असंखेज्जप एसिया वि, अणतपएसिया वि । - भग० श २५ । उ४ ।
द्विप्रदेशी स्कंध ( बहुत ) प्रदेशार्थ से - ओघादेश से कदाचित् द्वापर युग्म है, किन्तु त्र्योज और कल्योज नहीं है । त्र्योज और कल्योज नहीं है, द्वापर युग्म है ।
[सू १७९]
१७६ से १७९ पृ० ९२५
तीन प्रदेशी स्कंध प्रदेशार्थ से - ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म यावत् कल्योज विधानादेश से कृतयुग्म, द्वापर युग्म
है, किन्तु त्र्योज और द्वापर युग्म नहीं है । और कल्योज नहीं है, किन्तु त्र्योज है ।
चतुष्पदेशी स्कंध प्रदेशार्थ से - ओघादेश से भी विधानादेश से भी कृतयुग्म है, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज नहीं होते ।
कदाचित् कृतयुग्म और विधानादेश से कृतयुग्म,
पंच प्रदेशी कंधों का स्वरूप ( प्रदेशार्थ से ) परमाणु पुद्गलों के समान, छ:प्रदेशी स्कंधों का कथन द्विप्रदेशी स्कंधों जैसा, सप्त प्रदेशी स्कंधों का वर्णन त्रिप्रदेशी स्कंधवत्, अष्टप्रदेशी स्कंधों का विधान चतुष्प्रदेशी स्कंधों के समान, नवप्रदेशौ स्कंधों का कथन परमाणु पुद्गलों के समान, दशप्रदेशी स्कंधों का कथन द्विप्रदेशी स्कंधों के समान है ।
संख्यात प्रदेशी स्कंध – प्रदेशार्थ से — ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म यावत् कल्योज है । विधानादेश से कृतयुग्म भी है यावत् कल्योज भी है ।
इसी प्रकार असंख्यात प्रदेशी और अनंत प्रदेशी स्कंधों के विषय में ( प्रदेशार्थ से ) भी जानना चाहिए ।
चाक्षुषः ।
-२ पुद्गल स्कंध चाक्षुष भी है तथा अचाक्षुष भी है
अनन्तानन्तपरमाणुसमुदयनिष्पाद्यपि कश्चित् चाक्षुषः कश्चिद,
--- सर्वार्थसिद्धि अ ५ । सू २८ । टीका
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