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पुद्गल-कोश
५२७ धिरुत्कृष्टावधिरित्यर्थः, लभते पश्यति, तथा कार्मणशरीरं च लभते। आह'एकप्रदेशावगाढं' इति सामान्योक्ती कथं परमाणु-द्वयणुकादिकं द्रव्यं गम्यते, यावता 'एकप्रदेशावगाढं कार्मणशरीरं' इत्युपात्तमेव कस्माद् न योज्यते ? नवम्, कार्मणशरीरस्याऽसंख्खेयप्रदेशावगाहित्वेनेकप्रदेशावगाढत्वासंभवाविति। भगुरुलधु च द्रव्यं सर्वमपि परभावधिः पश्यति 'च' शब्वाद् गुरुलघु च सर्व पश्यति । 'च' शब्दाद् गुरुलघु च सर्व पश्यति । जात्यपेक्षं चैकवचनम्, अन्यथा हकप्रदेशावगाढानि कार्मणशरीराण्यगुरुलघूनि गुरुलधूनि च सर्वाग्यपि द्रव्याण्यसो पश्यतोत्यवगंतव्य मिति । तथा तेजसशरीरविषयेऽवधौ कालतो भवपृथक्त्वं परिच्छेद्यतयाऽवगंतव्यम् x x x।
रूपगतं लभते सर्वम्, इत्यस्य वक्ष्यमाणत्वात् । अत्रोच्यते- यः सूक्ष्म परमाण्वादिपश्यति तेन बादरं कार्मणशरीराद्यवश्यमेव द्रष्टव्यम्, यो वा बावरं पश्यति तेन सूक्ष्ममवश्यं ज्ञातव्यमित्ययं न कोऽपि नियमः, xxx इत्येवं समस्तपुद्गलास्तिकायविषयत्वं परमावधेराविष्कृतं भवति x x x।
एक प्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्य, कार्मण शरीर और अगुरुलघुद्रव्य को परमावधि ज्ञान देखता है ; जो अवधिज्ञान दो से नव भव तक देखता है वह तेजस शरीर को देखता है।
पुद्गल का ज्ञान
एक प्रदेशावगाढ–एक आकाश प्रदेश में स्थित परमाणु, दो प्रदेशी स्कंध से अनंत प्रदेशी स्कंध सर्व पुद्गल द्रव्य तथा कामंण शरीर-परमावधिज्ञान-उत्कृष्टावधि ज्ञान देखता है।
कार्मण शरीर आकाश के असंख्यात प्रदेशों को अवगाहित कर रहता है अतः वह आकाश के एक प्रदेश को अवगाहित कर नहीं रहता है। अस्तु परमावधिज्ञानी अगुरुलघु सर्व पुद्गल द्रव्य को और गुरुलघु सर्व द्रव्य को देखता है । जाति की अपेक्षा एक वचन है ऐसा नहीं कहा जाता है तो एक आकाश प्रदेश में अवगाहित कार्मण शरीर अगुरुलघुद्रव्य तथा गुरुलघुद्रव्य को परमावधिज्ञानी देखता है। जो परमाणु आदि सूक्ष्म द्रव्य को देखता है वह कार्मण शरीरादि ( स्थूल) को अवश्यमेव देखता है, जो बादर द्रव्य को देखता है वह सूक्ष्म द्रव्य को अवश्य देखता है-ऐसा नियम नहीं है। परमावधिज्ञानी समस्त पुद्गलों को देखता है ।
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