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पुद्गल-कोश
५१९ पडइ, से केण?णं भंते ! तं चेव पडिउच्चारेयव्वं ? गोयमा! अप्पणो आइ8 आया १ परस्स आइ8 नो आया २ तदुभयस्स आइ8 अवत्तव्वं ३ देसे आइट्ठ सम्भावपज्जवे देसे आइट्ठ असम्भावपज्जवे एवं दुयगसंजोगे सव्वे पडंति तियगसंजोगे एक्को ण पडइ ।
छप्पएसियस्स सव्वे पडंति, जहा छप्पएसिए एवं जाव अणंतपएसिए। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ ।
-भग• श । १२ उ १० । सू २२४-२२६ पृ. ५८६-८७ पंच प्रदेशी स्कंध ----कथंचित् आत्मा है, २-कथंचित् नो आत्मा है, ३-आत्मा नो आत्मा रूप कथंचित् अवक्तव्य है।
४-७-कथंचित् आत्मा, नो आत्मा और आत्मा, नो आत्मा उभय रूप से कथंचित् अवक्तव्य है।
८ से ११-कथंचित् आत्मा और अवक्तव्य के चार भंग ।
१२ से १५-कथंचित् नो आत्मा और अवक्तव्य के चार भंग, त्रिक संयोगी आठ भंग में से एक आठवां भंग घटित नहीं होता अर्थात् सात भंग होते हैं। कुल मिला कर बावीस भंग होते हैं ।
इसके कथन का कारण यह है कि१-पंच प्रदेशी स्कंध अपने आदेश से आत्मा है ।
२ ---पर के आदेश से नो आत्मा है।
३-तदुभय के आदेश से अवक्तव्य है, एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा और एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से कथंचित् आत्मा है, कथंचित् नो आत्मा है । इस प्रकार द्विक संयोगी सभी भंग पाये जाते हैं । त्रिसंयोगी आठ भंग होते हैं। उनमें से आठवां भंग घटित नही होता।
छःप्रदेशी स्कंध के विषय में ये सभी भंग घटित होते हैं। छःप्रदेशी स्कंध के समान यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध तक कहना चाहिए।
विवेचन-पंचप्रदेशी स्कंध के २२ भंग होते हैं। इनमें से पहले के तीन भंग पूर्ववत सकला देश रूप है। इसके बाद द्विसंयोगी बारह भंग है। त्रिसंयोगी आठ
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