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पुद्गल-कोश
स्कंध की उलत्ति में भेद, संघात आदि (भेद-संघात ) कारण रूप है ।
एगत्तेण, पुहुत्तेण, खन्धा य परमाणु य ।
-उत्त० अ ३६ । गा ११
समवाय रूप में पुद्गल स्कंध है तथा भिन्न रूप में परमाणु है ।
.५९ स्कंध पुद्गल को पर्याय
( देखो पाठ के लिए क्रमांक १२.१)
स्निग्ध-रूक्ष गुणों के द्वारा द्वयणुक आदि स्कंध रूप में परिणमन होता है तब उनमें विभाव पर्याय होती है। स्कंध अवस्था में वह बहुप्रदेशी होता हैं ।
.६० स्कंध पुद्गल-अगुरुलघु-गुरुलघु होता है
(पाठ के लिए देखो क्रमांक ११.१४ व ३१.११) द्विप्रदेशी स्कंध यावत् संख्यात प्रदेशी स्कंध यावत् असंख्यात प्रदेशी स्कंध व सूक्ष्म अनंत प्रदेशी स्कध अगुरुलघु होते हैं तथा बादर अनंत प्रदेशी स्कंध आठ स्पर्शी होने से गुरुलघु होते हैं।
.६१ गंध के पुद्गल और वायुकाय
अह भंते ! कोटपुडाणं वा जाव-केयइपुडाण वा अणुवायंसि उब्भिज्जमाणाण वा निभिज्जमाणाण वा उक्किरिज्जमाणाण वा विक्किरिज्जमाणाण वा ठाणाओ वा ठाणं संकामिज्जमाणाणं कि को? वाति जाव केयई वाइ ? गोयमा ! नो को? वाति, जाव-नो केयई वाति, घाणसहगया पोग्गला वाति।
-भग० श १६ । उ ६ । सू १०६ । पृ० ७३२
कोई पुरुष कोष्टपुट ( गन्ध द्रव्य का पुट्टा ) यावत् केतकी पुट को एक स्थान से दूसरे स्थान लेकर जाता हो और अनुकूल हवा चलती हो, तो कोष्टपुट यावत् केतकी पुट नहीं बहते हैं परन्तु गंध के पुद्गल बहते हैं ।
_ विवेचन-कोष्टपुट आदि सुगन्धित द्रव्य अनुकूल हवा की ओर ले जाये जाते हों तो उनकी सुगन्ध हवा में फैल कर ध्राण-ग्राहय होती है।
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