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देवों में छओं हो सकती है । भाव लेश्या - जीव का परिणाम है | कहा है
"तंजस समुद्घातस्तेजोलेश्याविनिर्गमकाले
परिशातहेतुः ।"
- पण० पद ३६ । गा १ टीका
अर्थात् तैजस समुद्घात करने के समय तेजोलेश्या निकलती है तथा उसके निर्गमनकाल में तेजस नामकर्म के पुद्गलों का क्षय होता है ।
कहा है
तत्र द्रव्यविषये या क्रिया एजनता । एज कंपने जीवास्याजीवस्य वा कंपनरूपा चलनस्वभावा सा द्रव्य क्रिया ।
करण
पण्णवणा में
- अभिधा ० भाग ३ | पृ० ५३२
जीव और अजीव पुद्गल की स्पंदन रूप गति रूप क्रिया द्रव्य क्रिया है । क्रियते येन तत्करणं x x x तथा परिणामवत्पुद्गल संघात इति भावः । - ठाण० स्था ३ । उ १ । सू १२४ । टीका
-करना क्रिया है । पुद्गल का संघात होना भी करण है ।
द्रव्यकृष्ण यावत् द्रव्यशुक्ल लेश्या में पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस तथा आठ स्पर्श होते हैं ।' निश्चयनय की अपेक्षा प्रत्येक द्रव्य लेश्या में पांच वर्ण होते हैं ।
तेजसनामकर्म पुद्गल
द्रव्ययोगादि पौद्गलिक है अतः अजीवोदय निष्पन्न होना चाहिए -
पओगपरिणामए वण्णे, गंधे, रसे, फासे × × × ।
१. भग० श १२ । उ ५ । सु १६ २. षट्खंडामम ४, ४ । सू ३१ । पु १३
अयोगि केवली को छोड़कर शेष सभी संसारी जीवों में तैजस - कार्मण शरीरों का एक संघातन परिशातन कृति ही है क्योंकि सर्वत्र इनके पुद्गल स्कंधों का आगमन और निर्जरा दोनों ही पाये जाते हैं ।
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