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पुद्गल-कोश
४६९ द्विप्रदेशी स्कंध यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध-प्रत्येक प्रत्येक संख्यात नहीं है, असंख्यात नहीं है तथा अनंत है । .५ द्रव्य देश से पुद्गल अनन्त है
१ घणदेसेण सव्वे पोग्गला सपएसावि अप्पएसावि, अणंता; खेत्तादेसेण वि एवं चेव ; कालदेसेण वि, भावदेसेण वि एवं चेव ।
-भग• श ५ । उ ८ । सू २ द्रव्यदेश से सर्व पुद्गल अनंत है अर्थात् सप्रदेशी पुद्गल भी अनंत है, अप्रदेशी पुद्गल भी अनंत है। इसी प्रकारक्षेत्र देश से भी, काल देश में भी तथा भाव देश से भी सब पुद्गल अनंत है। ___ नोट-सप्रदेशी पुद्गल द्रव्य देश से व क्षेत्र देश से नियम से स्कंध पुद्गल होते हैं। •२ स्कंध पुद्गल के अनंत भेद जात्याधारानन्तभेवसंसूचनार्थ बहुवचनं ( अणवः स्कन्धाश्च ) क्रियते।
-- तत्त्व० अ ५ । सू २५ पर राजवातिक टीका-पद ३ वे अनंत पुद्गल जाति अपेक्षा से अनन्त प्रकार के हैं।
नोट-यह अनन्त पुद्गल पर्यायार्थ से भी अनंतानंत प्रकार के हैं क्योंकि पर्याय अनंतानंत है। .३ स्कंध की संख्या सूक्ष्मस्थूलपरिणामाः स्युः प्रत्येलमनन्तकाः ।
-लोकप्र. स ११ । गा ७ पूर्वार्ध । पृ० ५४९ पुद्गलास्तिकाय का प्रत्येक स्कंध अनंत-अनंत है। पुद्गल स्कंध सूक्ष्म और बादर परिणाम वाले हैं। •४ स्कंध के भेद-अनंत
अनन्त भेदाः स्कन्धाः स्युः केचन द्विप्रदेशकाः । त्रिप्रदेशावयः संख्यासंख्यानन्तप्रदेशकाः ॥
-लोकप्र० सा ११ । गा ६ । पृ० ५४९
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