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पुद्गल-कोश
४३७ एकप्रदेशावगाढो द्विप्रदेशावगाढापेक्षया प्रदेशहीनो, द्विप्रदेशावगाढस्तु तदपेक्षया प्रदेशाभ्यधिकः, शेषं प्राग्वत् ।
विप्रदेशस्कंधसूत्रे- ( ओगाहणट्टयाए सिय होणे इत्यादि ) यदा द्वावपि त्रिप्रदेशको स्कंधौ त्रिप्रदेशावगाढौ स्कंधौ त्रिप्रदेशावगाढौ द्विप्रदेशावगाढावेकप्रदेशावगाढी वा तदा तुल्यौ, यदा त्वेकस्त्रिप्रदेशावगाढो वा द्विप्रदेशावगाढो वाऽपरस्तु द्विप्रदेशावगाढ एक प्रदेशावगाढो वा तदा द्विप्रदेशावगाढेकप्रदेशावगाढौ यथाक्रम त्रिप्रदेशावगाढद्विप्रदेशावगाढापेक्षया एकप्रदेशहीनौ, विप्रदेशावगाढद्विप्रदेशावगाढौ तु तदपेक्षया एक प्रदेशाभ्यधिको, यदा त्वेक स्त्रिप्रदेशावगाढोऽपर एक प्रदेशावगाढस्त्रिप्रदेशावगाढापेक्षया द्विप्रदेशहीनस्त्रिप्रदेशावगाढस्तु तदपेक्षया द्विप्रदेशाभ्यधिकः एवमेकैक प्रदेशपरिवृद्धया चतुःप्रदेशाऽऽदिषु स्कंधेष्ववगाहनामधिकृत्य हानिर्वृद्धि तावद्वक्तव्या यावद्दशप्रदेशकस्कंधः। तस्मिंश्च दशप्रदेशकस्कध एवं बक्तव्यम्- "जइ होणे पएसहीणे वा दुपएसहीणे वा जाव नवपएसहीणे वा, अह अभिहिए पएसमभहिए वा दुपएसमन्भहिए वा जाव नवपएसमठमहिए इति ।" भावना पूर्वोक्तानुसारेण स्वयं कर्तव्या। ____ संख्यातप्रदेशकस्कंध सूत्रे-( ओगाहणट्टयाए दुट्ठाणवडिए इति ) संख्येयभागेन संख्येयगुणेन वेति ।
असंख्यात प्रदेशकस्कंधे-(ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणडिए इति ) असंख्यातभागेन संख्यातभागेन संख्यातगुणनाऽसंख्यातगुणेनेति ।
अनंतप्रदेशस्कंधेऽप्यवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितता, अनंतप्रदेशावगाहनयाऽसंभवतोऽनन्तभागानन्तगुणाभ्यां वृद्धिहान्यसंभवात् ।
द्विप्रदेशी स्कंधों में अनंत पर्याय होते हैं ।
द्विप्रदेशी स्कंध द्विप्रदेशी स्कंध से द्रव्य रूप से तुल्य है तथा प्रदेश रूप से भी तुल्य है।
द्विप्रदेशी स्कंध द्विप्रदेशौ स्कंध से अवगाहन रूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है। यदि न्यून है तो एक प्रदेश न्यून है ; यदि अधिक है तो एक प्रदेश अधिक है।
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