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________________ ३७० पुद्गल-कोश तो वे अनर्द्ध होते हैं । द्विप्रदेशी स्कंध की संख्या संघात और भेद के कारण अवस्थित नहीं होती है अतः वे कभी समसंख्यक हो जाते हैं तथा कभी विषमसंख्यक हो जाते हैं। इसी प्रकार तीन प्रदेशी स्कंध यावत् दस प्रदेशी स्कंध यावत् संख्यातप्रदेशी स्कंध यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कंध यावत् अनंतप्रदेशी स्कंधों की संख्या सम होती है तो वे सार्ध होते हैं और संख्या विषम होती है तो वे अनर्द्ध होते हैं। (ग) द्वयाविप्रदेशवन्तो यावदनन्तप्रदेशकाः स्कंधाः । -प्रशम० श्लो २०८ टीका-द्वयादिप्रदेशभाजः स्कंधाः संघाताः एकद्वयणुकप्रभृतयः। द्वयोरयोस्त्रयाणां वेत्याविप्रारब्धाः यावदनन्तप्रदेशाः सवं स्कंधाः। द्विप्रदेशी स्कंध दो परमाणुओं के संघात से बनता है यावत् अनंत स्कंध अनंतपरमाणुओं के संघात से बनता है। .५१.६.१ स्कंध सप्रदेशी है "द्वयादिप्रदेशवन्तो यावदनन्तप्रदेशकाः स्कंधाः । -प्रशम० श्लो २०८ पूर्वार्ध दो प्रदेशी से लेकर अनंतप्रदेशी तक स्कंध सप्रदेशी होते हैं। स्कंध अप्रदेशी नहीं होता है। .५१७ स्कंध पुद्गल छिन्न-भिन्न होता भी है, नहीं भी होता है परमाणुपोग्गले णं भंते ! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा ? हंता, ओगाहेज्जा। से गं भंते ! तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? गोयमा! नो इण? सम8, णो खलु तत्थ सत्थं कमइ, एवं जाव - असंखेज्जपएसिओ। अणंतपएसिए णं भंते ! खंधे ! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा ? हंता, ओगाहेज्जा। से गं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा ? गोयमा ! भत्थेगइए छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा अत्थेगइए णो छिज्जेज्ज वा णो भिज्जेज्ज वा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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