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२–प्रायोगिक-जीव के प्रयोग से शरीरादि रूप में परिणत पुद्गल प्रायोगिक पुद्गल है।
३-मिश्र-जीव के द्वारा मुक्त होने पर भी जिनका प्रयोग से हुआ परिणमन नहीं छुटता अथवा जीव के प्रयत्न व स्वभाव दोनों के संयोग से बनते हैं वे मिश्र पुद्गल कहलाते हैं। जैसे
१-प्रायोगिक परिणाम-जीवच्छरीर । २-मिश्र परिणाम-मृत शरीर । ३-वैस्रसिक परिणाम-उल्कापात । इनका रूपान्तर असंख्यकाल के बाद अवश्य ही होता है ।
क्षेत्र और अवगाहन में इतना अन्तर है कि क्षेत्र का सम्बन्ध आकाश प्रदेशों से है, वह परमाणु व स्कंध द्वारा अवगाढ़ होता है तथा अवगाहन का सम्बन्ध पुद्गल द्रव्य से है। तात्पर्य, कि उनका अमुक परिणाम क्षेत्र में प्रसरण होता है।
__ द्रव्य लेश्या पौदगलिक है। यह अनंतप्रदेशी अष्टस्पर्शी पुद्गल है। पांच वर्ण, पांच रस व दो गध होते हैं। द्रव्यलेश्या आकाश के असंख्यातप्रदेश को अवगाहकर रहती है। प्रत्येक द्रव्यलेश्या की अनंतवर्गणा होती है। गुरुलघु है। द्रव्ययोग में मनोयोग व वचनयोग के पुद्गल चतुःस्पर्शी है तथा काययोग के पुद्गल अष्टस्पर्शी है। स्कंध-भेद की प्रक्रिया के कुछ उदाहरण
दो परमाणु-पुद्गल के मेल से द्विप्रदेशी स्कंध बनता है और द्विप्रदेशी स्कंध के भेद से दो परमाणु हो जाते हैं ।
तीन परमाणु से त्रिप्रदेशी स्कंध बनता है और उनके अलगाव में दो विकल्प हो सकते हैं-तीन परमाणु अथवा एक परमाणु और एक द्विप्रदेशौ स्कंध ।
चार परमाणु के समुदय से चतुःप्रदेशी स्कंध बनता है और उसके भेद के चार विकल्प होते हैं।
१-एक परमाणु और एक त्रिप्रदेशी स्कंध । २-दो द्विप्रदेशी स्कंध । ३-दो पृथक्-पृथक् परमाणु और एक दोप्रदेशी स्कंध । ४-चारों पृथक्-पृथक् परमाणु ।
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