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पुद्गल-कोश
(घ) रस का ग्रहण रसेन्द्रिय द्वारा होता है ।
जिभाए रसं गहणं वयंति x x x रसस्स जिन्भं गहणं वयंति, जिन्भाए रसं महणं वयंति
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- उत्त० अ ३२ । गा ६१-६२
रस को जिह्वा इन्द्रिय का ग्राहय ( विषय ) कहते हैं । जिह्वा को रस का ग्रहण करने वाली कहते हैं और रस को जिह्वा इन्द्रिय का ग्राहय कहते हैं ।
(ङ) स्पर्श का ग्रहण स्पर्शेन्द्रिय द्वारा होता है ।
कायस्स फासं गहणं वयंति x x x
फासस्स कायं गहणं वयंति, कायस्स फासं गहणं वयति
- उत्त० अ ३२ । गा ७४-७५
काया को स्पर्श का
स्पर्श को काया - स्पर्शेन्द्रिय का ग्राहय विषय कहते हैं । ग्राहक कहते हैं और स्पर्श को काया का ग्राहय कहते हैं ।
चक्खुदंसणावरणीयं गरुअलहुअनंतपदेसि एसु दच्वेसु णिबद्ध ं । १२ ।
- षट्० सू १२ । पु १५ पृ० ६८९
टीका–संखेज्जासं खेज्जपदे सियपोग्गलदव्वं चवखुदंसणस्स विसओ ण होदि । किंतु अणतपदेसियपोग्गलदव्वं चैव विसओ होदित्ति जाणावणटुमणंतपदेसिएस दव्वेसु त्ति भणिदं । एवं वयणं देसामासियं, तेण सव्वेंस दसणाणमचक्खुसण्णिदाणमेसा परूवणा कायव्वा । गरुअलहुअविसेसणं अनंतपदेसियक्खु धस्स होदि, गरुआणलोह दंडादीणं हलुआणमक्क तुलादीणं च चक्खिदिएण गहणुवलभादो । × × × ण, चविखंदियविसए परमाणु आदीणमसंभवादो ।
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चक्षु दर्शनावरणीय कर्म गुरु व लघु ऐसे अनन्त प्रदेशवाले द्रव्यों में निबद्ध है ।
इस बात को
संख्यात व असंख्यात प्रदेशवाले पुद्गल द्रव्य चक्षु दर्शन का विषय नहीं होता किन्तु अनन्त प्रदेशवाले पुद्गल द्रव्य ही उसका विषय होता है । जतलाने के लिए 'अनन्त प्रदेश वाले द्रव्यों में 'यह कहा है । यह वचन देशमशंक है । इसलिए उसके अचक्षु संज्ञा वाले सब दर्शनों की यह प्ररूपणा करनी चाहिए । * गुरु व लघु यह अनन्त प्रदेशवाले स्कंध का विशेषण है, क्योंकि चक्षुरिन्द्रिय के द्वारा
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