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पुद्गल-कोश
२२९ टीका-स्कंधाकारपरिणतपुद्गलानां तु संख्येयासंख्येयानन्तप्रदेशत्वम् । किंतु पुद्गलव्याख्यानेन प्रदेशशब्देन परमाणवो गाह्या, न च क्षेत्रप्रदेशाः । कस्मात पुद्गलानाभनन्तप्रदेशक्षेत्रेऽवस्थानाभावादिति। परमाणो व्यक्तिरूपेणैकप्रदेशत्वं शक्तिरूपेणोपचारेण बहुप्रदेशत्वम् । (च) व्योमानन्यप्रदेशं पुद्गलद्रव्यं च ।
--प्रशम० श्लो २१४। टीका (छ) प्रदेशा भसोऽनंता अनंतानंतमानकाः। पुद्गलानां जिनरुक्ताः परमाणुरनंशकः॥
__योसा० अधि २ । श्लो ११ जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश-ये पाँच द्रव्य सप्रदेशी है तथा कालद्रव्य अप्रदेशी है।
स्कंध रूप में परिणत पुद्गल संख्यात-असंख्यात-अनंतप्रदेशी होते हैं। पुद्गल के प्रदेश शब्द से परमाणु को ग्रहण करना चाहिए; परन्तु क्षेत्र-प्रदेश का नहीं। व्यक्तिगत भाव की अपेक्षा परमाणु एक प्रदेशी है अतः अप्रदेशी कहा जाता है तथापि परमाणु में मिलने की शक्ति होने से उपचार से उसे बहुप्रदेशी कहा जाता है अर्थात् दो परमाणु से लेकर संख्यात, असंख्यात, अनंत परमाणुओं के स्कंध तक प्रदेश भेद होने के कारण संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी तथा अनंतप्रदेशी जानना चाहिए । .२ पुद्गल के प्रदेश और द्रव्य-द्रव्यदेशत्व
एगे भते ! पोग्गस्थिकायपएसे कि दवं, दव्वदेसे, दवाई, दव्वदेसा; उदाहु दव्वं च दव्वदेसे य, उदाहु दवं च दवदेसा य, उदाहु दवाइच, दव्वदेसे य, उदाहु दवाईच दवदेसा य ? गोयमा ! सिय दवं, सिय दन्वदेसे, णो दव्वदेसा, णो दव्वं च दव्वदेसे य, जाव णो दवाईच दव्वदेसा य ।
दो भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसा कि दव्वं, दव्वदेसे-पुच्छा। गोयमा ! सिय दव्वं, सिय दव्वदेसे, सिय दव्वाई, सिय दव्वदेसा; सिय दवं च दव्वदेसे य णो दव्वं च दन्वदेसा य ; सेसा पडिसेहेयव्वा ।
तिणि भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसा कि दवं, दम्वदेसे-पुच्छा। गोयमा ! सिय दव्वं, सिय दन्ददेसे, एवं सत्त भंगा भाणियन्वा, जाव सिय दव्वाइं च दव्वदेसे य, णो दवाईच दव्वदेसा य ।
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