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पुद्गल-कोश पुरच्छिमिल्ल चरिमंत्तं एगसमएणं गच्छइ, दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरिल्लं जाव गच्छइ, उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ दाहिणिल्लं जाव गच्छइ, उरिल्लाओ चरिमंताओ हेढिल्लं चरिमंतं एवं जाव गच्छइ, हेटिल्लाओ चरिमंताओ उवरिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ ? हंतागोयमा! परमाणुपोग्गलेणं लोगस्स पुरच्छिमिल्लं तं चेव जाव उवरिल्लं चरिमंतं गच्छइ ।
-भग• श १६ । उ ८ । सू ७
टीका - 'परमाणु' इत्यादि, इदं च गमनसामर्थ्य परमाणोस्तथास्वभावस्वादिति मंतव्यमिति ।
उपपातगति तीन प्रकार की होती है -यथा-क्षेत्रोपपातगति, भवोपपातगति तथा नोभवोपपातगति ।
नोभव का अर्थ होता है ---भव से रहित अर्थात् कर्म के संबंध से प्राप्त हुए नारकत्वादि पर्याय से रहित । वह नोभवोपपातगति पुद्गल अथवा सिद्ध के होती है। क्योंकि वे दोनों पूर्वोक्त स्वरूपवाले भव से रहित होते हैं ।
अतः कहा गया है कि नोभवोपपातगति दो प्रकार की होती है-यथापुद्गलनोभवोपपातगति मथा सिद्धनोभवोपपातगति ।
जो परमाणुपुद्गल एक समय में लोक के पूर्व चरमांत से पश्चिम चरमांत तक, पश्चिम चरमांत से पूर्व चरमांत तक, दक्षिण चरमांत से उत्तर चरमांत तक, उत्तर चरमांत से दक्षिण चरमांत तक, ऊपर के चरमांत से नीचे के चरमांत तक और नीचे के चरमांत से ऊपर के चरमांत तक जाता है उसे पुद्गलनोभवोपपातगति कहते हैं।
१२.०८.०३ निक्षिप्त पुद्गल की गति
देवे णं भंते ! महिड्डीए, जाव–महाणुभागे पुवामेव पोग्गलं खिपित्ता पभू तमेव अणुपरियट्टित्ता गं गेण्हित्तए ? हंता पमू। से केण?णं जाव-गिण्हित्तए ? गोयमा ! पोग्गले णं विक्खिते समाणे पुवामेव सिग्घगई भवित्ता तओ पच्छा मंदगइ भवइ, देवेणं महिड्डीए पुवि वि य पच्छा वि सोहे सोहगई चेव, तुरिए तुरियगई चेव, से तेण? गं जाव-पभू गेण्हित्तए।
-भग. श ३ । उ २ । सू २२-२३
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