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पुद्गल-कोश मिलना, भिन्न होना, संख्या, संस्थान, संयोम और विभाग-ये (पुद्गल) पर्यायों के लक्षण होते हैं। (ख) अण्णणिरावेक्खो जो, परिणामो सो सहावपन्जावो। खंधसरूवेण पुणो, परिणामो सो विहावपज्जायो।
-नियम• मा २८ जो परिणमन अन्य की अपेक्षा रहित होता है उसे स्वभाव पर्याय कहते हैं और जो परिणमन स्कंधरूप से होता है उसे विभावपर्याय कहते हैं ।
टीकाकार का कथन है कि परमाणु पुदगल में स्वभावपर्याय होता है क्योंकि उसमें अन्य की अपेक्षा नहीं है, अत: परमाणु पुद्गल में विभावपर्याय अर्थात् स्कंधपर्याय नहीं होता है। .. (ग) सबंधयारउज्जोओ, पहा छायातवे इ वा। वण्णरसगंधफासा, पुग्गलागं तु लक्खणं ॥
-उत्त० अ २८ । गा १२ (घ) सद्दो बंधो सुहुमो थूलो संठाण भेव तम छाया। उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्वस्स पन्जाया ॥
-बृद्रस० गा १६ । पृ. ४५ (च) स्पर्शरसगंधवर्णाः शब्दो बंधश्च सूक्ष्मता स्थौल्पम् । संस्थान भेदतमश्छायोद्योतातपश्चेति ॥
-प्रशम० श्लो २१६ टीका-स्पर्शादयः पुद्गलद्रव्यस्योपकाराः।
शब्द, बंध, अंधकार, उद्योत, प्रभा, छाया, धूप, संस्थान, भेद, आतप, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श-ये पुद्गल के लक्षण हैं अथवा पर्याय हैं । .१२.०२ एकत्व-पृथक्त्व
एगत्तेण पुहत्तेण खंधा य परमाणुणो। लोएगदेसे लोए य भइयव्वा ते उ खेत्तो ।।
-उत्त० अ ३६ । गा ११
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