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पुद्गल द्रव्य के दो भेद हैं -एक स्वभाव पुद्गल और दूसरा विभाव पुद्गल । परमाणु स्वभाव पुद्गल है और स्कंध विभाव पुद्गल है। स्वभाव पुद्गल के दो भेद हैं-एक कार्य परमाणु, दूसरा कारण परमाणु । स्कंध के छः प्रकार है-पृथ्वी, जल, छाया, चार इन्द्रिय के विषय रूप पदार्थ, जैसे- शब्द, सुगन्धादि। कार्मण योग्य पुद्गल वर्गणा और कर्म अयोग्य पुद्गल ऐसे छः भेद है ।
स्कंधों के गलने से अणु होता है और अणुओं के मिलने से स्कंध होता है ।
रस, रूधिर, मांस, मेदा, अस्थि, मज्जा और शुक्र - इनकी विस्रसोपचय संज्ञा है-ऐसा षटखंडागम में कहा है। पांच शरीरों के परमाणु पुद्गलों के मध्य जो पुद्गल स्निग्ध आदि गुणों के कारण इन पांच शरीरों के पुद्गलों में लगे हुए हैं उनकी विस्नसोपचय संज्ञा है। उन विस्रसोपचयों के सम्बन्ध का पांच शरीरों के परमाणु पुद्गल गत स्निग्ध आदि गुण रूप जो कारण है उसकी विस्रसोपचय सज्ञा है। क्योंकि यहाँ कार्य में कारण का उपचार है ।
धर्माधर्माकाशकालानाम् मुख्यवृत्त्यकसमयतिनोऽर्थपर्याया एव जीवपुद्गलानाम् अर्थपर्याया व्यंजनपर्यायाश्च ।
-प्रव० अ २ । ग । ३७ तात्पर्यवृत्ति जीव और पुद्गल में ही व्यंजन पर्याय (स्वभाव एवं विभावद्विविधः) होती है। व्यंजनपर्याय संसारी जीव तथा पुद्गल के विशेष पारिणामिक भाव तथा परिस्पन्दन निमित्त से होता है । पुद्गलजीवास्तु क्रियावंतः।
-तत्त्व. अ५ । सू ६ का भाष्य
पुद्गल और जीव क्रियावान् है ।
अनादिरादिमांश्च । रूपिष्वादिमान् ॥
- तत्त्व• अ५ । सू ४२, ४३ काल की अपेक्षा से परिणाम बताया गया है-अनादि-सादि। पुद्गलों का परिणाम आदिमान है। १. षट् ५, ६, सू ५५३ टीका । पु १४ ।
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