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पुद्गल-कोश
११९ पुनगुणानां वर्णगंधरसादीनां बाहुल्यादेकस्मिन् परमाणुस्कंधे भूयसामवस्थानान्न सर्वेषां गुणानां विनाशो भवति। द्रव्यस्य तदन्यत्वेऽपि परमाणुसंगमविगमाभ्यां नाशेऽपि बहुतराणां वर्णगंधरसादीनां मष्टेष्वपि केषुचित् परिणामादिषु गुणेषु गुणानां स्थितिरिति हेतोव्यस्थानायुषो भावस्थानायुरसंख्यगुणमिति स्थितम् ।
द्रव्य (स्कन्धत्व ) का उपरम हो जाने पर गुणों की अवस्थिति रहती है-यह अनेकान्त है, क्योंकि कदाचित् गुणों का विनाश भी देखा जाता है ।
गुण ( कृष्णत्वादि ) का विनाश हो जाने पर द्रव्य (स्कंधत्व ) का विपरिणमन अवश्यंभावी है-इसे एकान्त नहीं माना जा सकता, क्योंकि गुण के विनष्ट हो जाने पर भी द्रव्य उसी अवस्था में रहता है।
जिस समय द्रव्य विपरिणाम को प्राप्त होता है उस समय किसी स्थल में युगपत् गुण की परिणति होती है तथा कहीं तदवस्थ-उस अवस्था में भी गुण का विपरिणाम होता है। अर्थात किसी द्रव्य का विपरिणाम होने पर एक काल में गुण का भी परिणमन होता है और किसी द्रव्य की उसी अवस्था में मुण का विपरिणाम होता है।
किसी द्रव्न में स्वपरमाणु के विघटन या अपर परमाणु के संघटन से द्रव्य का विपरिणाम होने पर युगपत्-एक काल में प्राक्तन परिणाम आदि गुणों का भी विपरिणमन होता है। फिर किसी द्रव्य में अपर परमाणु के संगम तथा स्वपरमाणु के विगमन के अभाव में भी द्रव्य की उसी अवस्था में गुण परिणाम का विनाश होता है क्योंकि घट रूपी द्रव्य में उसी अवस्था में पाक के द्वारा प्राचीन श्यामादि गुणों का विनाश देखा जाता है ॥१४॥
उत्तर देते हुए आचार्य कहते हैं फिर भी मैं सत्य कहता हूँ कि द्रव्य में गुणों का बाहुल्य होने से सब गुणों का नाश नहीं होता है तथा द्रव्य के अन्य अवस्था में परिणत होने पर भी बहुत से गुणों का अवस्थान रहता है।
द्रव्य के अन्यथा भाव में परिणत होने पर तथा द्रव्य के उसी अवस्था में रहने पर गुण का अन्य रूप में परिणत हो जाना जो कहा गया है वह सत्य है क्योंकि इन दोनों भंगों के किसी प्रकार घटित होने पर वर्ण, गंध, रस आदि गुणों की बहुलता से एक परमाणु स्कंध में बहुत से गुणों के अवस्थान रहने पर सभी गुणों का विनाश नहीं होता है। द्रव्य के अन्यथा रूप में परिणत होने पर परमाणु के संगम और वगम से बहुत से वर्ण, गंध, रसादि गुणों का नाश हो जाने पर उन नष्ट परिणाम
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