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प्रस्तावना
हमने वर्गीकृत आगम ग्रन्थमाला को मूल १०० विभागों में विभाजित किया है । आगमों के वर्गीकृत सन्दर्भ संस्करण की पूरी योजना है ।
यथा सम्भव वर्गीकरण की सब भूमिकाओं में एकरुपता रखी जायेगी । पुद्गल का विषयांकन हमने ०६०१ किया है । इसका आधार यह है कि सम्पूर्ण जैन वाङ्मय को १०० भागों में विभाजित किया गया है ( देखें - मूलवर्गीकरण सूची पृ० ६ ।) इसके अनुसार पुद्गल का विषयांकन ०६ है । पुद्गल - अजीव-रूपीपुदगल भी १०० भागों में विभक्त किया गया है । ( देखें - पुद्गल वर्गीकरण सूची पृ० १० ) इसके अनुसार पुद्गल का विषयांकन ०६ होता है । अतः पुद्गल का विषयांकन हमने ०६०१ किया है। पुद्गल का धरातल पुद्गल परिणाम ( ०७ ) - से सम्बन्ध रखता है । इसके अनुसार पुद्गल का विषयांकन ०७ भी होता है । अतः पुद्गल का विषयांकन हमने ०७०१ भी रखा है । ( देखें पुद्गल परिणाम वर्गीकरण सूची पृ० ११ ) लोकालोक के विभाजन में पुद्गल का भी उल्लेख हुआ है (देखेंलोकालोक वर्गीकरण सूची पृ० ९ ) अतः पुदगल का विषयांकन ०११८ का भौ होता है ।
सामान्यतः अनुवाद हमने शाब्दिक अर्थ रूप ही किया है लेकिन जहाँ विषय की गम्भीरता या जटिलता देखी है वहाँ अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विवेचनात्मक अर्थ भी किया है । विवेचनात्मक अर्थ करने के लिए हमने सभी प्रकार की टीकाओं तथा अन्य सिद्धांत ग्रन्थों का उपयोग किया है । छद्मस्था के कारण यदि अनुवाद में या विवेचन में कहीं कोई भूल, भ्रांति या त्रुटि रह गई हो तो पाठक वर्ग सुधार लें I
बर्गीकरण के अनुसार जहाँ विषय स्पष्ट रहा वहाँ मूल पाठ के स्पष्टीकरण को भी अपनाया है किया है ।
मूल पाठ नहीं मिला अथवा जो मूल पाठ में अर्थ को स्पष्ट करने के लिए हमने टीकाकारों के तथा स्थान-स्थान पर टीका का पाठ भी उद्धृत
हमने संकलन का काम आगम. श्वेताम्बर व दिगम्बर ग्रन्थों तक रखा है तथा अनुवाद के कार्य में नियुक्ति, चूर्णी आदि का भी उपयोग किया है ।
जो पुद्गल पिण्ड एक रूप है उसका भंग खण्ड, चूर्णिका, प्रतर और अणुचटन ये छः
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होना भेद है । इसके उत्कर, चूर्ण, प्रकार है । लकड़ी या पत्थर आदि
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