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पुद्गल-कोश धाउचउक्कस्य पुणो, जं हेऊ कारणंति तं णेयो। खंधाणं अवसाणं, णादवो कज्जपरमाणू ।।
-नियम० अ २ । गा २५ जो चार धातु का हेतु है वह कारण परमाणु है तथा स्कंधों का अतिम भागकार्य परमाणु है।
पृथ्वी, जल, तेज और वायु–ये चार धातु हैं। जो इन चार धातुओं का कारण है वह कारण परमाणु कहलाता है अर्थात् जिन परमाणुओं के सम्बन्ध से ये चार धातुएँ परिणत होती हैं, स्कंध रूप दीखती हैं-वे परमाणु-कारण परमाणु कहलाते हैं।
गलते हुए पुदगल द्रव्य-स्कंधों में अन्तिम अवस्था में रहा हुआ जो परमाणु है वह कार्य परमाणु है। .०७.२.३ भिन्न पुद्गल तथा अभिन्न पुद्गल दुविहा पोग्गला पन्नत्ता, त जहा—भिन्ना चेव अभिन्ना चेव ।
-ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२ । पृ० १९२ पुद्गल के दो भेद होते हैं, यथा-भिन्न पुद्गल तथा अभिन्न पुद्गल । टीका–'दुविहे' त्यादि भिन्नाः-विचटिता इतरे त्वभिन्नाः ।
भिन्न अर्थात् अलग हुए पुद्गल तथा अभिन्न अर्थात् अलग नहीं हुए पुद्गल । .०७.२.४ भिदुरधर्मी पुद्गल तथा नोभिदुरधर्मी पुद्गल दुविहा पोग्गला पन्नत्ता, तं जहा-भेउरधम्मा चेव नोभेउरधम्मा चेव ।
-ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२ । पृ० १९२ पुद्गल के दो भेद होते हैं, यथा-भिदुरधर्मी पुद्गल तथा नोभिदुरधर्मी पुद्गल ।
टीका-स्वयमेव भिद्यत इति भिदुरं भिदुरत्वं धर्मों येषां ते भिदुरधर्माणः अन्तर्भूतभावप्रत्ययोऽयं, प्रतिपक्षः प्रतीत एवेति । ... जो स्वयं ही भेदा जाता है वह भिदुर है अर्थात् जिसका भिदुरधर्म है वह भिदुरधर्मी है । इस वाक्य में भावप्रत्यय अन्तर्भूत है। भिदुरधर्म से विपरीत नोभिदुरधर्म अर्थात् जो स्वयं नहीं भेदा जाता है वह नोभिदुरधर्मी है।
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