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पुद्गल-कोश
• ०४.८० बहियापोग्गलपक्खेवे ( बहिःपुद्गलप्रक्षेप )
टीका - अभिगृहीत देशाद् बहिः प्रयोजनसद्भावे परेषां प्रबोधनाय विपुद्गलप्रक्षेपे ।
उवा० अ २ । सू ६ । पृ० ११३२
बहिः पुद्गल प्रक्षेपण से - अभिगृहीत क्षेत्र के बाहर प्रयोजनवश किसी का ध्यान आकर्षित करने के लिए अथवा अन्यथा पुद्गल - कंकड़, पत्थर आदि का फेंकना । यह श्रावक के देशावकाशिक व्रत का पाँचवाँ अतिचार है ।
श्रावक के दसवें व्रत के अनुसार जितने परिभ्रमण क्षेत्र की सीमा की गई हो, यदि उस सीमा के बाहर स्थित किसी का ध्यान आकर्षित करने के लिए - बुलाने के लिए पुद्गल - कंकड़ आदि फेंके जायें तो उस प्रक्षेपण से देशावकाशिक व्रत का पाँचवाँ अतिचार लगता है ।
०४८१ बहुकम्म पुग्गलगालणं ( बहुकर्मपुद्गलगालन )
सामान्य अर्थ है - बहुत से कर्मपुद्गलों को गलाकर ।
- कसापा० गा २२ । टीका २१८ । भाग ७ । पृ० १०९
कषाय की उत्तर प्रकृतियों की विभक्ति के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा में अप्रत्याख्यान - मान के विवेचन में इस समास का व्यवहार हुआ है । ०४.८२ बहुपोग्गलग्गहण ( बहुपुद्गलग्रहणार्थ )
— कसापा० गा ५८ । टीका ४१ । भाग ९ । पृ० १८२
अनन्तानुबन्धियों का उत्कृष्ट प्रदेश संक्रमण किसके होता है उत्तर के प्रसंग में बंध के द्वारा बहुत पुद्गलों के ग्रहण का कथन आया है । ०४८३ बहुपोग्गलणिज्जरणं ( बहुपुद्गल निर्जरणार्थ )
नाकाल )
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उदय के द्वारा बहुत कर्मपुद्गलों की निर्जरा कराने के लिए नीचे के बहुत कर्मस्कंधों का निक्षेप किया जाता है ।
·०४८४ मणपोग्गलपरियट्टनिव्वत्तणाकाल
(मनःपुद्गलपरावतं निर्वतं
इस प्रश्न के
- कसापा० गा २२ । टीका १३१ | भाग ६ । पृ० १२६
- भग० श १२ । उ ४ । प्र ३० । पृ० ६६२
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