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पुद्गल-कोश यहाँ नारकी जीव का विवेचन है। नरक में उनकी स्थिति का कारण पुद्गलों को अर्थात् आयुष्यकर्म के पुद्गलों को कहा गया है।
अतः नारकियों को पुद्गलस्थितिक कहा गया है, क्योंकि उनकी स्थिति आयुष्यकर्म के पुद्गलों के आधार पर होती है । .०४.६० पोग्गलाणुभागो (पुद्गलानुभाग)
___षट् • खं० ५। ५ । सू ८२ । टीका । पु १३ । पृ० ३४९ पुद्गल का अनुभाग। छः द्रव्यों की शक्ति का नाम अनुभाग है।
जर-कुटुक्खयादिविणासणं तदुप्पायण च पोगलाणुभागो। जोणिपाहुडे भणिदमंततंतसत्तीओ पोग्गलाणुभागो त्ति घेत्तव्यो।
ज्वर, कुष्ठ और क्षयादि का विनाश करना और उनका उत्पन्न कराना.-इसका नाम पुदगलानुभाग है। अथवा योनिप्राभृत में कहे गये मंत्र-तंत्र रूप शक्तियों का नाम पुद्गलानुभाग है। .०४.६१ पोग्गलगोभवोववायगई (पुद्गलनोभवोपपातगति)
पण्ण० प १६ । सू ११०१ । पृ० ४३२ पुदगल की जो गति भवरहित (नारकादि भवरहित ), उत्पाद रहित ( जन्म प्रक्रिया रहित ) होती है वह पुद्गलनोभवोपपातगति ।
मूल-से कि तं पोग्गलणोभवोववायगई ? पोग्गलणोभवोववायगई जण्णं परमाणुपोग्गले लोगस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्छिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ, पच्छिमिल्लाओ वा चरिमंताओ पुरथिमिल्लं चरिमतं एगसमएणं गच्छइ, दाहिणिल्लाओ वा चरिमंताओ उतरिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ, एवं उत्तरिल्लाओ दाहिणिल्लं, उवरिल्लाओ हेट्टिल्लं, हेड्रिल्लाओ वा उवरिल्लं । से तं पोग्गलणोभवोववायगई।
परमाणुपुद्गल जब लोक के पूर्वचरमांत से पश्चिम चरमांत तक, पश्चिम चरमांत से पूर्व चरमांत तक, दक्षिण चरमांत से उत्तर चरमांत तक, उत्तर चरमांत से दक्षिण चरमांत तक, ऊर्ध्वचरमांत से अधोचरमांत तक, या अधोचरमांत से ऊर्ध्वचरमांत तक एक समय में गति करता है तब उस गति को पुद्गलनोभवोपपातगति कहा जाता है।
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