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पुद्गल-कोश
नाणाविहसरीर - पुग्गल - विउव्विता ते जीवा कम्मोववन्नगा भवन्तीतिमक्खयं ।
पृथ्वीयौनिक बीजकाय - वृक्षों के शरीर के वर्ण-गंध-रस स्पर्श, संस्थान, शरीरपुद्गल आदि की रचना अपने-अपने कर्म के अनुसार अनेक प्रकार की होती है । •०४·४३ परमाणु-आदिम हक्बंधं तं - पोग्गलदव्वविसय-ओहिणाणकारणसगसंवेयणं (ओहिदंसणं ) (परमाणु आदिमहा स्कंधपर्यन्तपुलद्रव्यविषयअवधिज्ञानकारण भूतस्वसंवेदन )
- षट्० खं० ५ । ५ । सू ८५ टीका । पु १३ । पृ० ३५५ परमाणु से लेकर महास्कंध पर्यन्त पुद्गल द्रव्य को विषय करने वाले अवधिज्ञान के कारणभूत स्वसंवेदन का नाम अवधिदर्शन है ।
•०४-४४ परमाणुपोग्गलमेत्ते ( परमाणुपुद्गलप्रमाण )
- भग० श १२ । उ ७ । प्र २ । पृ० ६६६
इस इतने बड़े विशाल लोक में परमाणु पुद्गल जितना रोके उतना प्रदेश भी नहीं है जहाँ जीव का जन्म-मरण नहीं हुआ हो
• ०४४५ परमाणुपोग्गलवत्तव्वया ( परमाणुपुद्गलवक्तव्यता )
- भग० श १८ । उ १० । प्र १ । पृ० ७७८
परमाणुपुद्गल सम्बन्धी वर्णन |
यहाँ वैक्रिय लब्धिधारी भावितात्मा अनगार के सामर्थ्य का — यथा - तलवार आदि की धार पर स्थित होने पर भी छेदन - भेदन नहीं होता है— वर्णन करते हुए भगवती सूत्र के पाँचवें शतक में परमाणुपुद्गल के वर्णन की भोलावण दी गई है । ·०४४६ परमाणुपोग्गला ( परमाणुपुद्गल )
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- भग० श २ । उ १० । प्र ६६ । पृ० ४३५ 'परमाणु' त्ति परमश्चासावात्यन्तिकोऽणुश्च सूक्ष्मः परमाणु: - द्वघणुकादिस्कंधानाम् कारणभूतः, आह च
कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एकरसवणगंधी
द्विस्पर्श:
कार्यलिङ्गश्च ॥
– ठाण० स्था १ । सू ४५ । टीका में उद्धृत
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