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________________ पुद्गल-कोश उपाधं अर्थात् आधे से कुछ कम । अर्थात् अर्ध पुद्गल परावर्त से कुछ कम काल 1 -०४-१५ एगपोग्गल निविट्टविट्ठी ( एकपुद्गलनिविष्टदृष्टि ) ܐܕ आधे के समीप । उपार्धपुद्गलपरावर्त – भग० श ३ । उ२ । प्र २१ । पृ० ४५० एक पुद्गल पर स्थिर दृष्टि । भगवान् महावीर ने सुसमारपुर नगर के अशोक वन खण्ड में अशोक वृक्ष के नीचे पृथ्वी शिलापट्ट पर अष्टभक्त तप ग्रहण करके एक रात को महाप्रतिमा को अंगीकार कर एक पुद्गल पर दृष्टि को स्थिर रख कर ध्यान किया था । एक पुद्गल पर स्थिर दृष्टि — ध्यान का एक साधन है । ०४ १६ एयपदेसिय परमाणुपोग्गलदव्यवग्गणा ( एकप्रदेशिपरमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा ) - षट्० खं० ५ । ६ । सू ७६ । १४ । पृ० ५४ यहाँ पुद्गल वर्गणा का प्रकरण है, उसमें सर्व प्रथम एक प्रदेशी परमाणु पुद्गल द्रव्य वर्गणा का वर्णन है अर्थात् परमाणु पुद्गल द्रव्य की एक वर्गणा कही गई है । परमाणु को एक प्रदेशी या अप्रदेशी कहा गया है । इसी प्रकार द्विप्रदेशी पुद्गल द्रव्य वर्गणा यावत् अनन्तानन्त प्रदेशी पुद्गल द्रव्य वर्गणा होती है । अनन्तानन्त प्रदेशी पुद्गल द्रव्य वर्गणा के ऊपर आहार द्रव्ध वर्गणा होती है । -०४-१७ ओरालियपोग्गलपरियट्टनिव्वत्तणाकाल ( औदारिकपुद्गलपरावर्तनिर्वर्तन काल ) Jain Education International - भग० श १२ । ४ । प्र ३० । पृ० ६६२ औदारिक पुद्गल परावर्त के निष्पन्न होने में - परिसमाप्त होने में जितना काल लगे वह औदारिक पुद्गल परावर्त निष्पन्न काल कहलाता है । इसमें अनन्त उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी जितना समय लग जाता है । ०४ १८ ओरालियपोग्गलपरियट्टे ( औदारिकपुद्गलपरावत ) -भग० श १२ । उ ४ । प्र १४ । पृ० ६६० टीका- 'ओरालियपोग्गलपरियट्टे' त्ति औदारिकशरीरे वर्तमानेन जीवेन यदौदारिकशरीरप्रायोग्यद्रव्याणामौदारिकशरीरतया सामस्त्येन ग्रहणमसावौदारिकपुद्गलपरिवर्तः । एवमन्येऽपि । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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