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पुद्गल-कोश १०१ सुक्कपोग्गले .१०२ सुभपोग्गलपक्खेव .१०३ सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं .१०४ सुहुमसांपराइयचरिमसमयपरमाणुपोग्गलक्खंधकालो .०४ सविशेषण-ससमास-सप्रत्यय 'पोग्गल' शब्दों की परिभाषा •०४ ०१ अट्टविहकम्मपोग्गलखंधो ( अष्टविधकर्मपुद्गलस्कंधः )
-षट्० ख० ४ । २, १० । गा १ । टीका । पु १२ । पृ० ३०२ आठ प्रकार के कर्म पुद्गलों के स्कंध। इनको यहाँ वेदन कहा गया है, क्योंकि जिसका वर्तमान या भविष्यत् में वेदन किया जाय वह वेदना। बंधे हुए अष्टविध कर्म पुद्गलों का जीव अवश्य वेदन करता है। .०४.०२ अड्डाइज्जपोग्गलपरियट्ट ( सार्धद्वयपुद्गलपरावर्त )
-कसापा• गा २२ । टीका १८४ । भाग ४ । तृ० १०१ अढाई पुद्गलपरावर्त
यहाँ चतुर्गतिनिगोद के जीवों के प्रमाण को सिद्ध करने में अढाईपुद्गलपरावर्त शब्द का व्यवहार किया गया है ।
पण्णवण्णा पद १८ में निगोद, निगोद के रूप में, कितने काल तक रहता है इस प्रश्न के उत्तर में क्षेत्र की अपेक्षा 'अड्डाइज्जपोग्गलपरियट्टा' शब्द का व्यवहार हुआ है। .०४ ०३ अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियट्ट ( अनंतकाल-असंख्येयपुद्गलपरावत )
-कसापा० । गा० २२ । टीका १० । भाग ५ । पु. ३९ वह अनन्तकाल जो असंख्यात पुद्गल परावतं प्रमाण हो। यहाँ नपुसकवेदियों की अजघन्य अनुभाग विभक्ति का उत्कृष्टकाल कहा गया है तथा यह अनन्तकाल असंख्यात पुद्गल परावर्त प्रमाण बताया गया है। .०४ ०४ अणंतपोग्गलपरियट्ट ( अनंतपुद्गलपरावर्त )
कसापा० गा २२ । टीका १८४ । भाग ४ । पृ० १०१ अनन्तपुद्गलपरावर्त-यहाँ अतीत काल में अनंतपुद्गलपरावर्त होते हैं- ऐसा कहा गया ।
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