________________
( 75 )
पुद्गलास्थिकाय से जीवों के औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय मनोयोग, बचनयोग, काययोग और श्वासोच्छवास का ग्रहण होता है । पुद्गलास्तिकाय का लक्षण ग्रहण रूप है ।
अठारह पापों का बंध ग्रामघातक की तरह करते हैं ।
कायिक और वायुकायिक जीवों में आयुष्यबंध सर्वत्र प्रथम और तृतीय भंग से ही होता है क्योंकि वहाँ से निकलकर उनकी उत्पत्ति मनुष्य में नहीं होने से सिद्धि-गमन का अभाव है अतः द्वितीय व चतुर्थ भंग नहीं होता है ।
चतुर्दशवे गुणस्थान में योग नहीं होने के कारण उदीरणा नहीं है । तेरहवें गुणस्थान में, केवल नाम और गोत्र कर्म की उदीरणा है ।
अनंतशेपपन्नक नारकी यावत् वैमानिक देव आयुष्यकमं को नहीं बांधते हैं | अभवसिद्धिक जीव अचरम ही होते हैं, चरम नहीं । अंतरालगति में परमशुक्ललेश्या हो सकती है परन्तु मनोयोग व वचनयोग नहीं होते हैं । यह निश्चित है कि लव सप्तमदेव सर्वार्थसिद्धिक अन्तत्तरोपपातिक देव होते हैं उनमें परमशुक्ललेश्या में स्थित मनुष्य (साधु) मर कर उत्पन्न होते हैं, चूं कि उनके अंतरालगति में मनोयोग, वचनयोग नहीं होते हैं परन्तु परमशुक्ललेश्या है |
मन, वचन और काय की प्रवृत्ति को योग कहते हैं । योग तीन हैं- मनोयोग, वचनयोग और काययोग | जीव और पुद्गल के संयोग से होने वाली क्रिया को योग कहते हैं। मनुष्य अयोगी भी होते हैं ।
जैन दर्शन को छोड़कर और किसी भी दर्शन ने मनुष्य देह में सर्वज्ञता स्वीकार नहीं की है । वे कहते हैं कि मनुष्य देह छुटने के बाद ईश्वर में सर्वज्ञता है जैन दर्शन कहता है कि ममुष्य देह में तेरहवें व चौदहवें गुणस्थान में भी सर्वज्ञता है ।
नौ बेयक और पांच अनुत्तरवासी देवों में पर्याप्त अवस्था में नव योग की मान्यता उपलब्ध होती है - चार मन के, चार वचन के व एक वैक्रिय काययोग | अबशेष देवों में पर्याप्त अवस्था में दस योग की मान्यता उपलब्ध होती है-चार मन के, चार वचन के, वैक्रिय काययोग व वैक्रियमिश्र काययोग |
योग के साथ होने वाली पौद्गलिक तथा आत्मिक हलचल एवं उसके साथ बदलने वाले वर्ण विशेष को लेश्या कहते हैं ।
आहारक, आहारकमिश्र काययोगवाले न्यून, औदारिक, औदारिकमिश्र काययोगवाले अधिक हैं | योग शरीर नाम कर्म का उदय है ।
मिथ्यात्वी अवस्था में तामली तापस ने साठ हजार वर्ष तक बेले- बेले तप किया। कहा जाता है उतना तप यदि सम्यक्त्व अवस्था में किया जाए तो सात जीव मोक्षगामी हो जाए ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org