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१३ -आहारादि का संविभाग न करने वाला।
१४-सभी को अप्रीति उत्पन्न करने वाला, अविनीत कहलाता है। अनुवृत्ति से अयोगी वह हुआ केवलिजिन, इस तरह अयोगि केवलिजिन है।
नोट--सयोमि केवलिजिन तथा अयोगि केवलिजिन क्रमशः तेरहवां तथा चौदहवां जीव-समास अर्थात् मुणस्थान जानना चाहिए।
अर्हन्त आदि द्वारा कथित 'प्रवचन' अर्थात् आप्त, आगम और पदार्थ--ये तीनों कहे जाते हैं। प्रवचन-जिसका वचन प्रकृष्ट है-ऐसा आप्त, प्रकृष्ट का वचन-प्रवचन अर्थात् परामागम, अर्थात् प्रमाण के द्वारा कहा जाता है वह प्रवचन अर्थात् पदार्थ । गोम्मटसार की मंदप्रबोधिनी टीका के अनुसार सास्वादान सम्यक्त्व में अत्त्वश्रद्धान अव्यक्त होता है और मिथ्यात्व में व्यक्त होता है। कहा हैरामो य दोसो वि य कम्मबीयं,
___ कम्मं च मोहप्पभवं वयंती। कम्मं च जाईमरणस्स मूलं,
दुक्खं च जाईमरणं वयंति ॥ राग और द्वेष कर्म के बीज है। कर्म मोह से उत्पन्न होता है और वह जन्म मरण का मूल है। जन्म-मरण को दुःख का मूल कहा गया है।
जरामरणवेगेणं,
बुज्झमाणाण पाणिणं । धम्मो दीवो पइट्ठा य,
गई सरणमुत्तमं ॥ जन्म और मृत्यु के वेग से बहते हुए प्राणियों के लिए धर्म-दीप, प्रतिष्ठा, गति और उत्तम शरण है।
दुखं हयं जस्स न होइ मोहो,
मोहो हो जस्स न होइ तण्हा । सहा हया जस्स न होइ लोहो,
____ लोहो हओ जस्स न किंचणाइ ॥ जिसके मोह नहीं है, उसने दुःख का नाश कर दिया। जिसके तृष्णा नहीं है, उसने मोह का नाश कर दिया। जिसके लोभ नहीं है उसने तृष्णा का नाश कर दिया। जिसके जिसके पास कुछ नहीं है, उसने लोभ का नाश कर दिया।
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