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आहारकमिश्रकाययोगी जीव देवायु का बंध नहीं करता है।
नोट-नारकादि तीन आयु का भी बंध नहीं होता है। योग और कर्म बंध औदारिकमिश्रकाययोग और कर्म-बंध
औदारिकमिश्रकाययोगिषु औदारिककाययोगिवद् बन्धप्रकृतयो व्युच्छित्यादयश्च ज्ञातव्याः। औदारिकमिश्रकाययोगिनोहि लब्ध्यपर्याप्ताः निवृत्त्यपर्याप्ताश्च तेन देवनारकायुषी आहारकद्वयं नरकद्वयं च तत्र बन्धयोग्यं नेति चतुर्दशोत्तरशतम् । तथापि सुरचतुष्कं तीथं च मिथ्यादृष्टिसासादनयोर्न बध्नाति । अविरते च बध्नाति।
-गोक० गा० ११५ । टीका औदारिकमिश्रकाययोगियों में औदारिककाययोगियों की तरह बन्ध प्रकृतियाँ और व्युच्छित्ति आदि जानना। औदारिकमिश्र काययोगी लब्ध्यपर्याप्त और निवृत्यपर्याप्त होते हैं, अतः उनके देवायु, नरकायु, आहारकद्धिक और नरकद्विक-बंध योग्य नहीं है। इसमें ११४ बंधयोग्य है। उनमें से भी सुरचतुष्क और तीर्थङ्कर, मिथ्यादृष्टि और सासादन में नहीं बंधती है। असंयत सम्यग्दृष्टि में बंधती है। मोहनीय कर्म में रति-अरति प्रतिपक्षी है, हास्य-शोक प्रतिपक्षी है, तीनों वेद परस्पर प्रतिपक्षी है। साता-असातावेदनीय प्रतिपक्षी है।
नोट-प्रकृति बंध और प्रदेश बंध का कारण योगस्थान है। वक्रियमिश्रकाययोगी जीव आयुष्य नहीं बांधया
वैक्रियिकमिश्रकाययोगिनां बन्धप्रकृतयः तत्र नरतिर्यगायुषो बन्धो नास्तीति ।
-गोक० गा० ११८ । टीका वैक्रियमिश्रकाययोगी जीव आयुष्य का बंधन नहीं करता है। मनुष्यायु व तिर्यंच आयुष्य को नहीं बांधता है।
___ नोट-गोम्मटसार के अनुसार वैक्रियकाययोग व वैक्रिय मिश्र काययोग–देव व नारकी के होता है। मनुष्य-तिर्यंच में नहीं होता है । योग और बंध •४७ कार्मणशरीरनामकर्मोदयापादितजीवप्रदेशपरिस्पन्दलक्षणयोगहेतुना कार्म__णवर्गणायातपुद्गलस्कन्धाः मूलोत्तरोत्तरोत्तरप्रकृतिरूपेणआत्मप्रदेशेषु अन्योन्यप्रवेशानुप्रवेशलक्षणबंध रूपेणावस्थिताःx xx।
-गोक० गा० १२५ । टौका
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