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अयोगी मनुष्य अचरम नहीं होता है अतः इसकी पुच्छा नहीं करनी चाहिए। सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी मनुष्य प्रथम-तृतीय-दो भग से आयुष्य बाँधता है । सयोगी अचरम वाणव्यंतर देव व आयुष्य बंध
वाणमंतर जोइसिय-वेमाणिया जहा गेरइया।
सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी वाणव्यन्तर देव प्रथम-तृतीय भंग से आयुष्य बांधता है। सयोगी अचरम ज्योतिषी व वैमानिक देव और आयुष्य बंध
सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी ज्योतिषी व वैमानिकदेव प्रथम-तृतीय भंग से आयुष्य बांधता है। .४२ सयोगी अचरम नारकी तथा नाम कर्म .४३ " " गोत्रकर्म •४४ , , अंतराय कर्म णामं गोयं अंतराइयं च जहेव णाणावरणिज्जं तहेव गिरवसेसं।
-भग० श० २६ । उ ११ । सू ६ ज्ञानावरणीय कर्म बंध की तरह अचरम सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगीनारकी पहले-दूसरे भंग से नाम-गोत्र-अंतराय कर्म का बंधन करता है । सयोगी अचरम असुरकुमार यावत् वैमानिक देव और नाम कर्म-गोत्र-अंतराय कर्म का बंध
नाम, गोत्र व अन्तराय सम्बन्धी पद ज्ञानावरणीय कर्म की वक्तव्यत्ता की तरह
जानना।
•४५ कार्मण काययोगी जीव आयुष्य नहीं बांधता है
कार्मणकाययोगिनां औदारिकमिश्रकाययोगिवद् भवति । तत्रापि विग्रहगता वायुबंधो नेति।
-गोक० गा० ११९ । टीका कार्मण काययोगी जीव आयु का बंधन नहीं करता है। •४६ माहारकमिश्रकाययोगी जीव आयुष्य नहीं बांधता
( आहारककाय ) तन्मिश्रकाययोगिनांxxx तम्मिस्सेणत्थि देवाऊ । इति वचनात् अबन्धः।
–गोक० गा० ११८ । टीका
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