________________
( ३४० )
सयोगी परंपरावगाढ़ जीव दंडक के संबंध में वैसा ही कहना, जैसा परंपरोपपन्नक विशेषणवाले सयोगी जीव दंडक के संबंध में पाप कर्म तथा अष्ट कर्म बंध के विषय में कहा ।
- ३३ सयोगी अनन्तराहारक नारकी आदि दंडक और पापकर्म का बंध ज्ञानावरणीय कर्म यावत् अंतराय कर्म
सयोगी
का बंध
31
अनंतराहारए णं भंते ! णेरइए पावं कम्म कि बंधी - पुच्छा ? एवं जहेव अणंतरोवबण्णएहि उद्दसो तहेव णिरवस से ।
नोट - आहारकत्व के प्रथम समयवर्ती को अनन्तराहारक कहते हैं ।
योगी अनंतराहारक जीव दंडक के संबंध में वैसा ही कहना, जैसा अनंतरोपपन्नक विशेषणवाले सयोगी - काययोगी जीव दडक के संबंध में पाप कर्म तथा अष्ट कर्म-बंधन के विषय में कहा है ।
जानना ।
"
* ३४ सयोगी परंपराहारक नारको आदि और पापकर्म का बंध
सयोगी परंपराहारए णं भंते ! णेरइए पावं कम्मं कि बंधी - पुच्छा ।
गोयमा ! जहेव परंपरोववण्णएहि उद्देसो तहेव णिरवसेसो भाणियव्वो ।
- भग० श० २६ । उ ७ परंपरोपपन्नक की तरह परम्पराहारक के विषय में सभी दंडको का विवेचन
29
Jain Education International
ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय कर्म का बंध
नोट – आहारकत्व के द्वितीयादि समयवर्ती को परंपराहारक कहते हैं । नोट – सयोगी - मनोयोगी - वचनयोगी - काययोगी परम्पराहारक होते हैं ।
• ३५ सयोगी अनन्तर पर्याप्तक नारको आदि दंडक और पापकर्म का बंध
सयोगी
17
ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय कर्म का बंध अतरपज्जत णं भंते! नेरइए पावकम्मं कि बंधी- कुच्छा ? गोयमा ! जहेव अनंत रोववन्न एहि उद्देसो तहेव निरवसेसं ।
- भग० श० २६ । उ ८ । सू १
सयोगी - काययोगी, सयोगी अनन्तर पर्याप्तक नारकी के विषय में नौ दंडक सहित सयोगी - काययोगी-अनंतरोपपन्नक की तरह जानना चाहिए । मनोयोग-वचनयोग न कहना चाहिए ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org